संसार में केवलज्ञान ही ऐसा जान है जो अनंत है- परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब

धमतरिहा के गोठ
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 संजय छाजेड़ 

परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी  महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पार्श्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज दिनांक 19 जुलाई 2025 को परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि सभी ध्यान में बैठकर परमात्मा से प्रार्थना करें कि हे परमात्मा मुझे जीवन में कोई भी पाप नहीं करना है आपकी तरह निष्पाप बनना है। संसार में पतितो का एक तू ही आधार है इसलिए हे भगवान आप ही मुझे बचा सकते हो। मुझे उस समय कुछ भी याद नहीं आता, जब सामने पाप आता है। संसार से तिराने वाले मुझे कब तिराओगे। मेरे जीवन में मुझे कामयाबियां मिल नहीं रही है और कमजोरियां मिट नहीं रही है। हे परमात्मा आपकी ऐसी कृपा मुझ पर हो जाए कि मुझे भी संसार से मुक्त होने में कामयाबी मिल जाए। परमात्मा कहते है भगवती सूत्र एक ऐसा आगम है जिसमें परमात्मा प्रभु महावीर से गौतम स्वामी ने जो प्रश्न पूछा और परमात्मा ने उसका जवाब दिया। इस सूत्र में 36000 प्रश्नों का संकलन है। संसार में केवलज्ञान ही ऐसा जान है जो अनंत है।

उत्तराध्ययन सूत्र का  पहला अध्याय विनय श्रुत अध्ययन है। इसके माध्यम से परमात्मा फरमाते है मनुष्य जीवन में दो कार्य करता है पहला व्यक्तित्व विकास और दूसरा चरित्र का विकास। संसार में सभी व्यक्तित्व विकास की बात करते है जबकि परमात्मा चरित्र विकास की बात करते है। क्योंकि चरित्र अर्थात गुण के आधार पर आने वाला भव मिलेगा। परमात्मा का मंदिर बनाना व्यक्तित्व विकास हो सकता है किंतु परमात्मा हृदय में आ जाए ये चरित्र विकास है। संसार में हमे अच्छे व्यक्तित्व वाला  व्यक्ति प्रिय लगता है जबकि परमात्मा को चरित्रवान व्यक्ति प्रिय लगता है। परमात्मा कहते है हमारा चरित्र हमें प्रसन्न रखता है उसके बाद समाधि (बिना किसी इच्छा के प्रसन्न रहना) प्रदान करता है। चरित्रगुण हमे जीवन के साथ प्रसन्नता और समाधि तथा जीवन के बाद सदगति या मुक्ति दे सकता है। पालकगण जीवन भर अपने बच्चों के परीक्षा में अच्छे नंबरों की इच्छा रखते है लेकिन उनके जीवन में अच्छे चरित्र अर्थात अच्छे गुण के विकास के बारे में नहीं सोचते। 

विनय दो प्रकार के होते है। 

लौकिक विनय - संसार के सभी जीवो के प्रति विनय। जीवन में अहंकार न हो तो ही विनय आ सकता है। अहंकार दुख का कारण है। 

लोकोत्तर विनय - जो लोक अर्थात् संसार से परे हो चुके है। ये है देव, गुरु और धर्म। ये विनय हमे संसार से मुक्ति की ओर ले जाता है। संसार के लिए पद, पैसा और प्रतिष्ठा की जरूरत होती है जबकि संसार से मुक्त होने के लिए देव, गुरु, धर्म की जरूरत होती है। गुरु ही हमे परमात्मा तक पहुंचने का और परमात्मा जैसा बनने का मार्ग दिखाते है। अहंकार को जीतने का मार्ग है विनय गुण।


18 पाप स्थानकों में दूसरा है मृषावाद - इसका अर्थ है झूठ बोलना। एक झूठ को छुपाने के लिए कई झूठ बोलना पड़ता है। मृषावाद के पाप को रोकने के लिए प्रमाणिकता अर्थात वास्तविकता अर्थात सत्य से  प्रेम करना चाहिए। सत्य से प्रेम करने वाला कभी झूठ नहीं बोलता। सत्यता अर्थात प्रमाणिकता का प्रमाणपत्र स्वयं के द्वारा स्वयं को मिलना चाहिए। अपनी गलती को नहीं बताना या सही बात को गलत ढंग से बताना। ये भी मृषावाद है। अहितकारी सत्य भी झूठ के समान है।

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