अज्ञानता के कारण बंधे हुए कर्म पर विजय पाने के लिए कर्म विजय तप किया जाता है- परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब

धमतरिहा के गोठ
0




संजय छाजेड़ 

परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब चातुर्मास हेतु श्री पार्श्वनाथ जिनालय धमतरी में विराजमान है।
परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने फरमाया कि कल पहले दादा श्री जिनदत्त श्री जी महाराज साहेब की 871वीं स्वर्गारोहण जयंती है इस अवसर पर कल बड़ी पूजा प्रातः 10:30 बजे श्री पार्श्वनाथ जिनालय में राखी गई है। आगे बताया कि दादा गुरुदेव ने एक बार बिजली को गिरने पर भक्तजनों के संकट निवारण के लिए अपने पात्र में बंद कर दिया था। 52 वीरों और 64 जोगनी को अपने वश में कर लिया था। आप अपने गुरु वल्लभ सागर सूरी जी श्री महाराज के पाठ पर विराजे थे। आपको युगप्रधान की पदवी मिली थी। अनेक बार आपने संघ के रक्षार्थ कार्य किए। और समय समय पर भक्तों के कष्टों का निवारण आपके द्वारा किया गया। लाखों जनों को अपने जिनशासन से जोड़ने का कार्य किया। ऐसे महान चमत्कारी पहले दादा युगप्रधान श्री जिनदत्त सुरी जी महाराज साहेब की आज 871वीं जयंती हम सब यहां पर बड़े धूमधाम से मना रहे है।

चातुर्मासिक सामूहिक तपस्या
दिनांक - 13/07/2025 दिन रविवार से प्रारंभ हो रहा है।

कर्म विजय तप 
अज्ञानता के कारण बंधे हुए कर्म पर विजय पाने के लिए कर्म विजय तप किया जाता है। अज्ञानता अर्थात जानकारी या समझ के अभाव में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमने जो कर्म का बंध कर लिया है तपस्या के माध्यम से उन कर्मों पर विजय पाने के लिए यह तप किया जाता है। यह तप 29 दिन का होगा। 

आत्म शोधन तप
यह तप अपनी आत्मा को पहचानने के लिए अर्थात मै अर्थात अपनी आत्मा को जानने के लिए किया जाता है। हम इस नाशवान शरीर को अपना मानते है जबकि ज्ञानीभगवंत कहते है शरीर तो बदलते रहता है जबकि शाश्वत आत्मा हमारी है। आत्मा कभी नहीं बदलती। इस तप के माध्यम से अपनी आत्मा को जानने और पहचानने का प्रयास करना है ।इस तप का उद्देश्य अपनी आत्मा की वास्तविकता को जानना है। ताकि हम आत्म विकास के मार्ग पर आगे बढ़ सके। आत्मा का विकास ही भविष्य में हमे शाश्वत सुखों तक अर्थात मोक्ष तक पहुंचा सकता है। और आत्मा का वास्तविक और परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करना ही होता है।


 

Tags:

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)