युक्तियुक्तकरण पर सरकार चिंतन कर ,शिक्षक साझा मंच से बातचीत करें

धमतरिहा के गोठ
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 संजय छाजेड़ 

छत्तीसगढ प्रदेश संयुक्त शिक्षक संघ के जिला प्रवक्ता पुरुषोत्तम निषाद  साय सरकार से मांग करते हुए कहा शिक्षकों , स्कूलों को गांव की गलियों से गायब न करें यही से देश की नींव तैयार होती है, जब तक नींव मजबूत नहीं होगी भविष्य का भारत चुनौतियों का सामना कैसे करेगा ।युक्तियुक्त करण प्रक्रिया  को लागू  करने के पूर्व साय सरकार को शिक्षक संघों,समाजिक संगठनों, विषय विशेषज्ञों  से बातचीत करना चाहिए। पूरे प्रदेश में  आने वाली भावी के निर्माण और गांव गांव में शिक्षा गुणवत्ता की पूर्णता  देश और समाज की संस्कृति संवर्धन का मूल आधार प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय है ।सरकार का उद्देश्य गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा देना है , तो युक्तियुक्त करण प्रक्रिया पर मंथन अतिआवश्यक है ।प्रदेश को देश के साथ साथ  विश्व के मानस पटल में अलग पहचान दिलाना चाहती है तो युक्तियुक्तकरण पर तुरंत रोक लगाना चाहिए  ,दर्ज संख्या कोई बड़ी विषय नहीं है आप दर्ज संख्या और  शिक्षक का आंकलन  किन आधार पर देखते है,आज के परिवेश में प्राथमिक और माध्यमिक शालाओं की गतिविधियां कालखंड पर  विचार कीजिए बच्चों को कागज का डिग्री न दे जिसमें सिर्फ साक्षरता हो उन्हें गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मिले ये एक पालक और शिक्षक चाहता है दर्ज संख्या और शिक्षक का पैमाना आज के परिवेश में तय हो ।आप प्रदेश की शिक्षा को कौन सा स्तर पर ले जाना चाहते है ,कितने बच्चों को पर एक शिक्षक देना चाहते जो पूर्ण रूपेण गुणवत्ता युक्त शिक्षा दे सके ,तो सरकार अवश्य  चिंतन करें।  युक्तियुक्तकरण किस तरह से समाज के लिए बेहतर लाभकारी  हो सकता  जिससे उनका विरोध नहीं स्वागत करे शिक्षक समाज ,इस दिशा पर सरकार को कार्य करना चाहिए। वर्तमान में पूरे प्रदेश में शिक्षक समुदाय बेहद परेशान और हताश है। जो आने वाले समय में सरकार के लिए अच्छा संदेश नहीं है ,सरकार को बड़ी चिंतन की आवश्यकता  है ।आप सभी आपरेशन सिंदूर देखे,कश्मीर की युवाओं के सोच को बदलते देखा जो पहले देश के लिए सोचते है और अब क्या सोच रखते है,ये सभी बेहतर शिक्षा और संस्कृति का परिणाम है ।समाज की  दिशा और दशा  शिक्षा निर्धारित करती है अच्छी शिक्षा के लिए हमें युक्तियुक्त करण प्रक्रिया ,शिक्षकों की समस्याओं ,हाई स्कूलों में संस्कृत विषय के लिए व्याख्याता के पद को शून्य करना अन्याय है  ।संस्कृत सनातन और संस्कृति की आधार है उक्त बिंदु पर पुनः विचार करना चाहिए शिक्षकों की समस्या  पदोन्नति, प्रथम नियुक्ति तिथि से पुरानीपेशन,क्रमोन्नति, सरकार अभी तक प्राचार्य,मिडिल स्कूल प्रधान पाठक, व्याख्याता पदोन्नति को नहीं कर पाए है बी एड ,डीएड, पर पेंच फंसा रखा  है सरकार निर्णय लेने में सक्षम है प्रदेश को नई दिशा देना सरकार के हाथ में है।युद्ध नई सिपाही से नहीं अनुभवियों से प्राप्त होती है।सिर्फ डिग्री ले लेना इनसे  कुछ नहीं होगा ,वर्षों से कार्य कर चुके है   उन्हें अनुभव के आधार पर प्रशिक्षितों को महत्व देते हुए अतिशीघ्र पदोन्नति प्रदान करना चाहिए ।जिससे बच्चों ,समाज, विभाग ,सरकार को लाभ मिल सके ।नए शिक्षण सत्र कुछ दिन बाद आरंभ होने वाली है ,सरकार की तैयारी क्या है आंकलन करे।सरकार शिक्षा बजट को खर्च न समझे यही आपकी असली पूंजी है जो  आपको दूरगामी परिणाम देंगे ,जिनका आपका  कभी कल्पना नहीं कर पाएंगे ,समाज को नई विकसित भारत में ले जाना है आत्म निर्भर,देश प्रेम की भावना भरी भारत की सपना रखने वाले  युवा देखना चाहते हो ,सरकारी स्कूलों में  पढ़ने वालों को ही सरकारी नौकरी मिले ये नियम लागू कर दिए जाए ,क्योंकि लोग पढ़ना ,पढ़ाना निजी में चाहते है और नौकरी सरकारी चाहते है जो कि गलत है समाज के प्रत्येक वर्ग यदि सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाएंगे  जो कि समाज की जवाबदेही जैसे पदों पर आसीन है तो सरकारी स्कूलों की  प्रति सोच ,परिवर्तन ,निसंदेह होगा ,उक्त दिशा में काम हो तो  सरकारी स्कूल मर्ज नहीं होगा अपितु सरकारी स्कूलों में नए भवन निर्माण की मांग होगी। शिक्षक भर्ती की और अन्य गतिविधियों पर आधारित शिक्षकों की मांग होगी, दर्ज संख्या और शिक्षक का स्वरूप अब क्या होनी चाहिए विकसित भारत के साथ  छत्तीसगढ़ राज्य अपने आपको कैसे स्थापित करेंगा,शिक्षकों को उनकी समस्याओं छुटकारा कब मिलेगी आखिर सरकार कब तक शिक्षकों को सड़क पर उतरने मजबूर करते रहेगा,समाज में शिक्षकों की छवि क्या बनाना चाहती है सरकार इस दिशा पर शिक्षक साझा मंच  से विमर्श नहीं  होती बातचीत नहीं होती,फिर तो साय सरकार आपको युक्ति युक्तकरण पर विचार करना आवश्यक हो जाता है।

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