आत्मा का ठिकाना तो मुक्ति है- परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब

धमतरिहा के गोठ
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 संजय छाजेड़ 

परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी  महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पार्श्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज दिनांक 18 जुलाई 2025 को परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि जिस प्रकार किसी बाग में खिलने वाला फूल एक दिन मुरझा जाता है उसी प्रकार इस संसार से एक दिन सभी को जाना है। धन, दौलत के चक्कर में पढ़कर हम अपनी वास्तविकता को भूल गए है। हमें विचार करना है कि हम कहां से आए है और कहां जाना है,? ये किसी को पता नहीं। किंतु अगर मानव जन्म के रूप में मिला हुआ अवसर हाथ से निकल गया तो पछतावा करने से भी कुछ नहीं होने वाला है। संसार के झूठ और पाप के चक्कर में हम पड़े हुए है जबकि हमें पुण्य की कमाई करना चाहिए। ज्ञानियों ने कहा है ये संसार तो केवल शरीर का ठिकाना है वो भी कुछ समय के लिए। जबकि आत्मा का ठिकाना तो मुक्ति अर्थात सिद्धगति अर्थात सिद्ध, बुद्ध होना है। 

ये चातुर्मास काल हमे कुछ जीवन के कुछ अनसुलझे प्रश्नों का जवाब जिनवाणी के माध्यम से देने आया है। परमात्मा महावीर की अंतिम देशना जो उत्तराध्ययन सूत्र में है उसे सुनकर और पढ़कर नहीं समझा जा सकता बल्कि आत्मविकास की रुचि अर्थात जिज्ञासा पूर्वक इसे समझा जा सकता है। उत्तराध्ययन सूत्र में दो शब्द है उत्तर और अध्ययन। उत्तर का अर्थ है प्रधान और अध्ययन का अर्थ है पाठ। परमात्मा ने जब अंतिम देशना दी उस समय उनका छठम का तप चल रहा था। जीवन के अंतिम समय में सबसे बड़ी देशना परमात्मा महावीर ने दी। 

इस सूत्र का पहला अध्याय है विनय श्रुत - विनय का अर्थ है झुकना। झुकने का अर्थ है ज्ञान से  झुकना, ज्ञान के लिए झुकना और ज्ञान में झुकना। वास्तव में ज्ञान का अर्थ आत्मा से है। जिन्होंने अपनी आत्मा के वास्तविक स्वरूप को जान लिया है और उसे प्राप्त कर लिए , उनके समक्ष वैसा ही गुण हमारे अंदर भी आ जाए हम भी अपनी आत्मा को प्राप्त कर लें , इस विचार से झुकना चाहिए। हम इस संसार में जड़ वस्तुओं के प्रति झुकने का भाव तो रखते है लेकिन चेतन के प्रति नहीं। यही इस संसार भ्रमण का कारण है। जिस दिन चेतन अर्थात आत्मा के प्रति झुकने का विनय का भाव आ जाएगा। संयोग का जीवन में संयोग देता है जबकि वियोग का विनय वियोग देता है। 


ज्ञानियों के कहा विनय दो प्रकार का होता है। 

लौकिक विनय - जिस लोक में हम है अर्थात हमारे आसपास जो भी है अर्थात पूरे विश्व के मनुष्य और पशुओं के प्रति विनय ।

प्रेम के अभाव में विनय नहीं हो सकता। पूरे जीवन का सार ही विनय है। विनय ही सुख का आधार है। किसी के उपकारों को देखने के लिए जीवन से अहंकार हटाना पड़ता है। जीवन में विनय गुण की प्राप्ति के लिए प्रेम पात्र अर्थात प्रेम प्राप्त करने वाला और प्रेम दाता अर्थात प्रेम देने वाला बनना पड़ेगा। जीवन में पहला प्रयास ये करना चाहिए कि जो आज हमारे पास है वो कभी हमसे दूर न जाए। साथ ही आज जो हमसे दूर है वो भविष्य में हमारे निकट आ जाए। और ये सब प्रेम भाव से ही संभव है। 

18 पाप स्थानकों में दूसरा है मृषावाद - इसका अर्थ है झूठ बोलना। जीवन में कषाय पैदा किए बिना हम झूठ नहीं बोल सकते। और जीवन में कषाय का आना ही पाप है। हमें विचार करना है कि हम कितना और कैसा झूठ बोलते है। शायद जीवन में हम डॉक्टर से झूठ नहीं बोलते क्योंकि शरीर का मोह होता है। जबकि हमें कम से कम परिवार और गुरु से झूठ नहीं बोलना चाहिए। क्योंकि इनके समक्ष सच बोलकर हम अपने जीवन से दोषों को दूर कर सकते है। और पतन से बच सकते है। सदगुणों को प्राप्त कर सकते है। झूठ बोलने की आदत हमारी आत्मा में कठोरता लाती है। झूठ बोलने से जीवन में भय आता है और भय दुख का कारण बनता है। झूठ बोलकर उसे याद रखना पड़ता है जबकि सच स्वतः ही याद रहता है। हमारा एक झूठ जीवन भर का विश्वास तोड़ देता है। झूठ बोलकर हम पाप का बंध करते है।

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