एक सच्चा शिष्य वही होता है जो गुरु के कथन पर कभी भी कोई भी संशय न रखे- परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब

धमतरिहा के गोठ
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 संजय छाजेड़ 

परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी  महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि आज गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व है। ज्ञानीभगवंतो ने कहा है गुरु नहीं तो जीवन शुरू नहीं। गुरु के बिना शिष्य की कल्पना भी नहीं कर सकते। एक शिष्य को हमेशा अपने गुरु के निकट आने का प्रयास करना चाहिए। जिस प्रकार एक लोहे का टुकड़ा पारस पत्थर के निकट आकर सोना बन जाता है उसी प्रकार अगर शिष्य अपने गुरु के निकट आ जाए वह मूल्यवान बन सकता है। एक सच्चा शिष्य वही होता है जो गुरु के कथन पर कभी भी कोई भी संशय न रखे। जब एक शिष्य के जीवन में गुरु के प्रति संदेह के स्थान पर समर्पण का भाव आ जाए तभी वह सच्चा शिष्य कहलाने के योग्य हो सकता है। वो शिष्य धन्य हो जाता है जिसके हृदय में गुरु होते है। किंतु वह शिष्य परम धन्य हो जाता है जो गुरु के हृदय में स्थान पा लेता है। गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव ही शिष्य को सर्वश्रेष्ठ बना सकता है। गुरु से कुछ प्राप्त करने के लिए आंखों के आंसू होना चाहिए। किंतु यह आंसू कुछ पाने के लिए नहीं बल्कि गुरु से प्राप्त कृपा के लिए होना चाहिए। हमने जिनसे भी जो कुछ भी सीखा है वह सभी हमारे गुरु है। और उनके उपकारों के हमेशा याद रखना चाहिए। उनके उपकारों के प्रति हमेशा आंखों में आंसू होना चाहिए। अर्थात उनके उपकारों को कभी नहीं भूलना चाहिए। एक शिष्य के हृदय में गुरु के प्रति डर भी होना चाहिए। किंतु यह डर उनके सम्मान के लिए होना चाहिए। यह डर गुरु बताए अनुशासन के पालन के लिए होना चाहिए। यह डर गुरु के प्रति समर्पण भाव के लिए होना चाहिए। जो शिष्य गुरु के निकट होता है,जो गुरु के वचनों को सुनता है उस पर कोई संदेह नहीं करता। जिसके हृदय में गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण का भाव होता है। जिसके आंखों में गुरु से प्राप्त कृपा के लिए आंसू रहे। जिनके मन में गुरु के बताए अनुशासन के पालन के लिए डर भी हो। वहीं सच्चा शिष्य बन सकता है। 

गुरु हमारे शंका का समाधान करते है और गूगल भी यही कार्य करता है किंतु फिर भी गुरु श्रेष्ठ है क्योंकि गूगल सभी के एक जैसे प्रश्न का एक ही जवाब देता है। जबकि गुरु शिष्य की पात्रता के अनुसार जवाब देते है। आज के दिन हमें अपने गुरु को अपने जीवन के सारे अवगुणों के दे देना चाहिए, सारे खोट को दे देना चाहिए। ताकि हमारे जीवन में कुछ भी ऐसा न रह जाए जिसके कारण जीवन का पतन हो। पूर्णिमा के पूर्ण चांद की तरह गुरु को भी हमेशा पूर्ण समझना चाहिए।

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