इस नवरात्रि मां विंध्यवासिनी देगी नये स्वरूप में दर्शन

धमतरिहा के गोठ
0

 


संजय छाजेड़ 

धमतरी नगर में स्थित बहत ही पाचीन मंदिर विंध्यवासिनी बिलाई माता के नाम से प्रसिद्ध है जिसके दर्शन मात्र से सब कार्य पूर्ण हो जाते ह। ऐसी ह अधिष्ठात्री एवं सरीक्षका देवो विंध्यवासिनो जमीन से दिव्य पत्थर से बढ़ते-बढ़ते स्वतः प्रकट हुई दवी को विशाल स्वरूप सिंदुर से सुशोभित लालिमा तेजोमय रूप से भक्तजनो को आशीर्वाद दने अपनी दष्टि से सबको निहार रही ह।

नव विवाहित वर-वधु मां विंध्यवासिनी से आशीर्वाद पाप्त कर अपने सुदीर्घ, सफल परिवारिक जीवन का पारंभ करते हैं जो भी व्यक्ति एक बार माँ के अलौकिक रूप को देख लता है बार-बार देखना चाहता हैं।

इस मंदिर के इतिहास के बारे में प्रथम ट्रस्टी स्वः आपा साहेब पवार बताते थे कि पहले यहाँ पर बियाबान जंगल रहता था। आज से लगभग 250 वर्ष पूर्व स्वः बापू राव पवार घोड़े में बैठकर उक्त जगल के तरफ से निकले अचानक घोड़े का पैर एक दिव्य पत्थर से टकरा गया तथा खुन बहने लगा। तब घोड़े से उतर कर उस पत्थर को उठाकर साईड बाजू में करने का प्रयास किया। लेकिन वह दिव्य पत्थर काफी जमीन के अंदर नीच तक था। घोड़े के पर से खून बहते हुये जैसे तैसे घर पहुंच उसी दिन रात्रि में स्वः बापूराव पवार को देवी द्वारा स्वपन में कहा गया कि मेरे स्थान पर पूजा अर्चना कर मंदिर का निर्माण किया जावें।

उक्त घटना के कुछ दिनों के पश्चात स्वः बाप्राव पवार के पुत्र वध स्वः चंद्रभागा बाई पति दीवान जी पवार के द्वारा अपने गह गाम सटियारा से बड़े-बड़े पत्थर बल गाड़ो से लाकर देवो माँ के मंदिर का निर्माण किया गया तथा उनके नाम पर उसी समय का शिलालेख गर्भगृह दीवाल पर आज लगा हुआ है जिसे पढ़ा भी जा सकता हैं।

दिव्य पत्थर के प्राण पतिष्ठा एवं मंदिर निर्माण के पश्चात उक्त दिव्य पत्थर उपर उठी तथा सुन्दर रूप दिखने लगा जिसे आज पतिदिन हजारों की संख्या में लोग दर्शन करने आते है।

    स्वर्ण जड़ित कलश,मुकुट और छत्र के बाद अब,,,,,

जगमोहन में राजस्थान के कारीगरों द्वारा मकराना मार्बल से गलीचा इनले वर्क, ऊपर खैरागढ़ संगीत एवम् कला विश्वविद्यालय के स्नाकोत्तर कलाकारों द्वारा म्यूरल आर्ट से विष्णु जी के दशावतार का सुंदर निर्माण,,, जयपुर के कारीगरों द्वारा निर्मित संगमरमर के दो सिंह माता के गर्भ गृह के प्रवेश द्वार पर,,,, फिरोजाबाद उत्तरप्रदेश से लाया गया जगमग झूमर,, स्वर्ण शुभ्र एवम् लाल स्वस्तिक से बाहरी दीवारों पर की गई पेंटिंग और पूरे मन्दिर पर आकर्षक लाईट सज्जा इस चैत्र नवरात्र पर माता के श्रद्धालुओं के लिए समर्पित करते हुए माता से प्रार्थना कि सभी भक्तों की मनोकामना पूर्ण कर पूरे क्षेत्र को स्वस्थ खुशहाल और संपन्न रखे।


स्व चंद्र भागा बाई पवार के बाद उन्ही के वंशज पवार परिवार मंदिर की देखरेख रख रखाव और नवरात्र में ज्योत प्रज्वलन एवं पुताई का कार्य करवाते रहे, 7 जुलाई सन् 1962 में स्व श्रीमति चंद्रभागा बाई पवार के वंशज स्व श्री आपासाहेब पवार ने लोक न्यास अधिनियम की धारा 415 के अंतर्गत पंजीयक लोक न्यास रायपुर के समक्ष मंदिर को लोक न्यास घोषित करने आवेदन प्रस्तुत किया, विधिवत जांच उपरांत पंजीयक लोक न्यास रायपुर ने दिनांक 23 जनवरी 1974 को आदेश पारित कर इसे श्री विंध्यवासिनी बिलाई माता मंदिर ट्रस्ट के नाम से लोक न्यास घोषित कर दिया। जिसमें स्व श्री आपा साहेब पवार, स्व श्री त्रयंबक राव जाधव, स्व श्री भोपाल राव पवार, स्व श्री गिरधर राव बाबर, स्व श्री तातोबा पवार और स्व श्री खिलौना महाराज जी को न्यासी घोषित किया गया। स्व आपा साहेब पवार की मृत्यु पश्चात प्रबंधक की हैसियत से स्व भोपाल राव पवार, मंदिर के उत्थान और देखरेख की जिम्मेदारी अपने जीवन पर्यंत करते रहे। आज वर्तमान में उक्त सभी न्यासियों के वंशज मंदिर के निर्माण सौंदर्याकरण और गरिमा को श्रद्धालुओ और भक्तो की भावनाओ के अनुरूप नई ऊंचाई प्रदान करने लगातार जुटे हुवें हैं।

Tags:

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)