जिले के कुछ लोगों से चर्चा करने पर उन्होंने स्पष्ट तौर पर कहा कि महानदी एवं इसकी सहायक नदियों से किसान एवं ग्रामीण सहित विभिन्न जीव कभी भी पानी के किल्लत से नहीं जूझे किंतु जबसे नदियों से रेत माफियाओं द्वारा निर्धारित क्षेत्र से बाहर जाकर वैध एवं अवैध खदानों के माध्यम से सैकड़ोंं हाईवा प्रतिदिन रेत की खुदाई की जाने लगी जिससे महानदी में रेत के नाम पर अब मिट्टी नजर आ रही है। बेरहम रेत माफियाओं द्वारा अपने स्वार्थ के लिये गहराई तक की रेत को निकाला जा रहा है जिसमें नर कंकाल तक निकल रहे हैं। इसके बाद भी इन पर कार्यवाही नहीं हुई वहीं दूसरी ओर पानी के बचाव को लेकर पूर्ववर्ती सरकार ने करोड़ों रूपये की लागत से नहरों के रिमॉडलिंग, लाईनिंग का कार्य करवाया था जो देखरेख के अभाव में अब जीर्णशीर्ण अवस्था में हो गई। 200 करोड़ की लागत से डिस्नेट नहर नालियों का निर्माण कराया गया। लेकिन आज इसका भी अतापता नहीं है। निर्माण करने वाले डिविजन को यहां से अन्यत्र भेज दिया गया। करोड़ों रूपये की लागत निर्मित नहर नालियों को सिर्फ इसलिये बनाया गया था कि पानी की बचत हो सके। लेकिन इसके जीर्णशीर्ण अवस्था में पहुंच जाने की वजह से अब खेतों तक पानी नहीं पहुंच पा रहा है। सरकार ऐसे वृहद कार्यक्रम को लेकर एक निगरानी समिति बनाकर ऐसे निर्माण कार्यों की सुरक्षा करवा सकती है।
जल-जगार कार्यक्रम के माध्यम से जो संदेश जिलेवासियों को दिया गया, उससे कहीं अधिक इस कार्यक्रम को लेकर जिलेवासियों में नाराजगी देखी जा रही है। इनका कहना है कि सिर्फ शोबाजी कर इस कार्यक्रम में चंद लोगों को बुलाकर अपनी वाहवाही लूटी गई है जबकि इससे जिलेवासियों को दूर रखा गया। ऐसे कार्यक्रम से पानी की सुरक्षा एवं पर्यावरण को संतुलित बनाये जाने का दावा नहीं किया जा सकता। अगर पानी को बचाना है और पृथ्वी के गर्भ में पानी का स्त्रोत पहुंचाना है तो सोख्ता एवं वॉटर हार्वेस्टिंग का शुरू से काम करते आ रही महानदी एवं सहायक नदियों को सहेजने के लिये यहां से अवैधानिक रूप से होने वाले रेत उत्खनन, परिवहन को रोका जाना अति आवश्यक है जिसके लिये जिला प्रशासन किसी भी प्रकार की ठोस कार्यवाही करने में ना-नुकुर करता आ रहा है। वर्तमान समय में भी 15 जून से 15 अक्टूबर तक एनजीटी के द्वारा इस पर प्रतिबंध लगाया गया है। लेकिन आज भी रेत भरकर हाईवा सैकड़ों की तादाद में शहर से होकर जिला एवं विभिन्न प्रांतों के लिये रवाना हो रही है जिसके लिये जिला प्रशासन कोई सख्त कार्यवाही करने का साहस नहीं कर रहा है जिससे मिलीभगत होने का स्पष्ट संदेश मिलता है। जल जगार महोत्सव जैसे कार्यक्रमों के लिये करोड़ों रूपये की राशि खर्च की गई, ऐसी चर्चा है।
जिला प्रशासन द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम के नाम पर व्यापक प्रचार प्रसार किया गया जिसमें कुछ तथ्यों को लेकर विपक्ष के लोगों ने भारी विरोध किया और इसका बहिष्कार किया। इनका कहना था कि यह कार्यक्रम में जिस प्रकार लाईटिँग की गई, उसमें तिरंगा को नया स्वरूप दिया गया और इस कार्यक्रम में जिला प्रशासन ने अपनी पीठ थपथपाने के लिये वीआईपी, वीवीआईपी, विदेशी कुछ मेहमानों को बुलाया गया। हद तो यह है कि इस कार्यक्रम में क्षेत्रवासियों के स्थान पर बाहरी लोगों को कार्य हेतु अधिक महत्व दिया गया। यहां तक इस कार्यक्रम में जितने भी लोगों ने कार्य किया, आधे से अधिक लोग बाहर के थे। स्थानीय लोगों की यहां उपेक्षा की गई। अब चूंकि जल जगार महोत्सव का उन्माद पूरी तरह समाप्त हो चुका है, अब नये सिरे से इस कार्यक्रम को लेकर कोई कार्य नहीं किया जा रहा है जबकि जल जगार महोत्सव के बाद इस कार्यक्रम को आगे भी चलाये जाने हेतु ग्राम पंचायत स्तर पर सरपंचों को पानी सहेजने के उपाय बताया जाना चाहिये था, जो नहीं किया जा रहा है। यह एक ऐसा आयोजन है जिसके प्रचार प्रसार को कई दिनों पहले शुरू किया और 6 तारीख को इसका समापन किया गया। उसके बाद से इस कार्यक्रम में जो बातें प्रचारित की गई, उसे लेकर जिला प्रशासन गंभीरता नहीं दिखा रहा है जिसे लेकर जिलेवासियों में रोष है। इन्होंने मांग की है कि एक तो रेत उत्खनन को सख्ती के साथ रोका जाये वहीं दूसरी ओर महानदी एवं सहायक नदियों से निकलने वाली रेत के संरक्षण को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिये, जो नहीं किया जा रहा है जिसे लेकर जिलेवासियों ने एक पैगाम जिला प्रशासन के लिये जारी किया है। इनकी मांग है कि गिरते जलस्तर को सुधारने रेत उत्खनन पर अविलंब सख्ती के साथ कार्यवाही की आवश्यकता है।
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