संजय
छाजेड
धमतरी। छत्तीसगढ के पारंपारिक त्यौहार हरेली पूरे अंचल में उत्साह एवं उमंग के साथ मनाया गया। सावन मास की अमावस्या को हरेली त्यौहार मूलत: हरियाली के साथ जुड़ा हुआ है। इस दिन को हम त्यौहारों की शुरुवात मानते हैं जो कि होली पर जाकर अंतिम त्योहार आता है। हरेली त्यौहार के साथ कई किंवदत्तियां जुड़ी है।
किसानों का प्रमुख और छत्तीसगढ़ का पहला त्योहार हरेली क्षेत्र में परंपरागत रूप से मनाया गया। प्रदेश के प्रमुख पर्वों में शामिल हरेली कृषि पर आधारित त्योहार है। लिहाजा किसानों ने सुबह से ही कृषि औजारों नांगर,हल, रांपा, कुदाल, इत्यादि की साफ-सफाई करते है इसके बाद परंपरागत रूप से नया मुरम डालकर पूजन स्थल तैयार किया। यहां सभी औजारों को सजाकर पूजा की गई। कृषि कार्य में किसानों को सहयोग देने वाले मवेशियों की पूजा की गई साथ ही इन्हें लोंदी गेहूं आटा से बना दवाई खिलाया गया। गाँव की गायों को चराने वाले चरवाहे द्वारा नीम की पत्तियों को हर घर के दरवाजे पर लटकाया जाता है जिससे ये माना जाता है की इससे बुरी शक्तियों का प्रवेश घरों में नहीं होता। यहीं नहीं यादवजनों के द्वारा घरों,दुकानेा, मवेशियों को बुरी नजर से बचाने के लिए गोशाला, घर के दरवाजे पर नीम की पत्ती लगाई गई। छत्तीसगढ़ी व्यंजनों का त्योहार विशेष पर खास महत्व है। हरेली त्योहार पर मीठा गुलगुला भजिया और गुड़ से बनी चीला रोटी का व्यंजन बनाया गया। इन व्यंजनों से इष्ट देव को भोग लगाया गया। साथ ही परंपरागत पकवानों का लुत्फ घर परिवार के लोगों ने भी लिया। हरेली पर बांस से गेड़ी बनाई जाती है। इसका भी पूजन किया जाता है। गेड़ी पर चढक़र बच्चे, युवा चलते, दौड़ते नजर आए। हालांकि बदलते समय के साथ गेड़ी चढऩे का चलन लगातार घट रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा शहरी क्षेत्र में कहीं-कहीं गेड़ी पर चढक़र खेलते बच्चों को देखा गया। त्योहर पर गेड़ी चढऩे का अलग ही आनंद है। युवाओं ने बताया कि गेड़ी में पैर रखने के लिए बांस के टूकड़े का पाव बनाया जाता है। इससे नारियल की बूच रस्सी से बांधा जााता है। जिससे चढऩे पर एक अलग ही आवाज निकलती है। जो आनंदित करती है।