संजय
छाजेड
धमतरी। केंद्र सरकार द्वारा 2024 की जो कृषि बजट पेश किया है वह किसानों के लिए कोई उत्साह जनक बजट नहीं है यह बजट घिसी पीटी पुरानी बजट जैसी है इसमें कोई नया नहीं है किसानों को बड़ी घोषणाओं एवं दीर्घकालिक योजनाओं की उम्मीद थी लेकिन यह बजट किसानो की उम्मीद पर पानी फिरता दिखाई दे रहा है सभी फसलों पर स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिश मूल्य एवं समर्थन मूल्य को कानूनी दर्जा देने की मांग किसानों द्वारा लगातार की जा रही थी लेकिन इस बजट में किसानों को निराशा हाथ लगी। साथ ही सम्मान निधि की राशि में सरकार ने कोई बढ़ोतरी नहीं की यानी पहले की तरह किसानों को साल मे 6000 रुपए ही मिलेंगे जब की खेती की लागत को देखते हुए किसान बढ़ोतरी की उम्मीद कर रहे थे किसानों के बीमा की राशि हड़प कर निजी बीमा कंपनी को मालामाल कर रही है जबकि देश प्रदेश में प्रतिदिन बड़ी संख्या में किसान आत्महत्या कर रहे हैं एवं कृषि नकली खाद एवं नकली रासायनिक दवाई के कालाबाजारी को रोकने में सरकार द्वारा कोई ठोस कदम उठाने इस बजट में नाकाम है प्राकृतिक खेती सिर्फ दिखावा खोखले हैं इसके लिए कोई पर्याप्त बजट नहीं है 1.52 लाख करोड़ का बजट का प्रावधान है जो कृषि के लिए अपर्याप्त है पिछले 5 सालों में जितना बजट कृषि मंत्रालय को दिया गया है उसमें से कृषि मंत्रालय ने एक लाख करोड़ बजट वापस लौटा दिया जिसे साबित होता है की वर्तमान सरकार खेती किसानी की मुद्दों पर गंभीर नहीं है। खाद्य तेलों व दालों में आत्मनिर्भर के लिए सरकार के पास कोई ठोस कदम नहीं है जब किसानों का दलहन तिलहन बाजार में आता है उस समय उन्हें ना तो सही दाम मिलता है ना ही सरकार द्वारा पर्याप्त खरीदी होती है सरकार यदि किसानों को समर्थन मूल्य पर कानूनी दर्जा दे तो किसानों को प्रोत्साहन मिलता और किसान दलहन तिलहन में आत्मनिर्भर बनते।सरकार के नीचे किसान लूट रहे हैं व्यापारी चंद चांदी काट रहे हैं। देश को आजाद हुए 77 साल हो गए हैं लेकिन आज भी किसानो की समस्याएं सुनने में सरकार असफल है।
किसान आंदोलन के दौरान भाजपा नेताओं व प्रवक्ताओं के द्वारा जिस तरह विशेषणों से नवाजा गया गाली दी गई आंदोलन को कुचलना का प्रयास किया गया इससे देश भर के किसानों में एक कड़वाहट तथा नाराजगी बैठ गई है। जिसमें किसानों की बहु प्रतीक्षित मांगों को पूरा करते हुए किसानों के लिए एक सकारात्मक बजट लाकर किसानों की नाराजगी को दूर किया जा सकता था।