संजय जैन
धमतरी |
जिला हिंदी साहित्य समिति के अध्यक्ष डुमन लाल ध्रुव ने कहा स्वागत उद्बोधन में कहा कि-राजेंद्र प्रसाद सिन्हा की कहानी छत्तीसगढ़ी संस्कृति की पहचान को जड़ों से जुड़े रहने का आग्रह करती है। कहीं-कहीं सतही तौर पर तो कहीं-कहीं गहराई से छत्तीसगढ़ी मिथकों का प्रयोग किया है। यह सत्य है कि कहानियों में मिथकीय संदर्भ कथा सूत्र को रोचक बनाते ही हैं उनके अर्थों को नया रूपों से भी उद्घाटित करते हैं।
इसी तरह
कहानी का डॉक्टर खेदू भारती सत्येश की छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह मया के जादू, तोर
किरिया, दाई के कोरा ज़्यादातर कहानियां गांव
की गलियों , चबूतरों, पगडंडियों
से गुजरती हुई ग्राम्य जीवन के सांस्कृतिक लोक राग और मानवीय करुणा की विराटता से
हमारा साक्षात्कार कराती है। कहानी संवेदना और संबंधों के बचे होने का अहसास कराती
है।
कहानीकार राजेंद्र सिन्हा ने अपनी विमोचित कहानी संग्रह के सन्दर्भ में कहा की-कहानी लेखन की प्रेरणा व सलाह सीताराम साहू जी से मिली। उन्होंने कहा था गद्य लेखन कवि के लिए कसौटी है आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी की बात कह कर छत्तीसगढ़ी में कहानी लिखने कहा था। तोर अगोरा म कहानी में सत्रह कहानियां हैं जिसमें दहेज जैसी सामाजिक कुरीतियां, भ्रष्टाचार, वृद्धजन की उपेक्षा, नशापान के दुष्परिणाम, मित्रता की गहरी परंपरा, सास बहू की मनोदशा का चित्रण है तो वही बेटियों व संघर्षशील युवक की कहानी विषम परिस्थितियों में भी संघर्ष करते हुए प्रशासनिक पदों पर लक्ष्य के अनुरूप पहुंचने की कहानी है । उच्च शिक्षा प्राप्त करने बाहर जाकर कैसे स्वच्छंद होकर कुछ लोग माता-पिता के अरमानों पर पानी फेर देते हैं उस पर लिखने का प्रयास किया है।
कहानीकार डॉ .खेदू भारती "सत्येश ने पुस्तक विमोचन के अवसर पर कहा कि मुंशी प्रेमचंद
जी कथा साहित्य के महान रचनाकार थे। उनकी रचनाओं में यथार्थवाद-आदर्शवाद के साथ
भारतीयता का भाव मुखरित हुआ है ।वे हमारे प्रेरणास्रोत तो है ही हम भी उनके
रचनाधर्मिता के अनुगामी अपने ह्रदय के भावों को शब्दों में रुपायित करने की कोशिश
की है ।समाज के प्रति हमारा जो कर्तव्य है उसी कर्तव्यबोध को अपनी कलम के
माध्यम से मातृभाषा छत्तीसगढ़ी भाषा में कहानियों को सृजित किया है। दाई के कोरा,तोर
किरिया,मया के जादू कहानी संग्रह के प्रत्येक कहानी
आपको सोचने पर मजबूर करेगा ही और कुछ न कुछ संदेश जरूर देगा। इन कहानियों में
यथार्थता व आदर्शता समाहित है ।
हिंदी साहित्य समिति के संरक्षक एवम कार्यक्रम कि अध्यक्षता कर रहे हास्य व्यंग के सुप्रसिद्ध कवि सुरजीत नवदीप ने सोना और चांदी का उदाहरण देते हुए श्री सुरजीत नवदीप ने कहा कविता, कहानी ऐसे लिखो की पैसा दूसरे का आपके पास आए। राजेंद्र प्रसाद सिन्हा की कहानी संग्रह तोर अगोरा म ग्राम्य जीवन , अमीर- गरीब, परिवारिक कलह, व्यक्तिगत स्वार्थ परता ,नयापन पर लिखी कहानी समाज के लिए प्रेरणापद है। मानवीय भावनाओं पर आधारित कहानी संग्रह है ।क्षणभंगुर जीवन में हम सब मुसाफिर हैं । मोह माया को भूलकर सत्कर्म करना चाहिए।
विशेष अथिति एवम छत्तीसगढ़ के सुप्रसिद्ध
गीतकार सीता राम साहू - राजेंद्र सिन्हा ने साहित्य की कसौटी पार कर ली है। गद्य
में लिखने का प्रेरणा मेरे सलाह मात्र से पूरी कहानी संग्रह की पुस्तक लिख डाला।
सराहनीय प्रयास है। कहानियों को दो बार पढ़ा हूं।मानव का महामानव चमत्कार है। दानव
बन जाना पराजय है ।भोंदू कहानी, तोर अगोरा म, परिवार , कमेलीन, करम
के फल , दाईज, मितान, उड़ान, आसरा
हर कहानी समाज को संदेश देता है। विधवा विवाह, थर्ड
जेंडर पर भी चिंतन किया गया है ।कहानी की भाषा सरल और जमीनी है। यही कहानी की
विशेषता है। साहित्य को इंसानी और जमीनी होनी चाहिए। शांति और सुकून देता है।
साहित्य और संगीत कभी पुराने नहीं होते।
डा.माणिक विश्वकर्मा नवरंग ने कहा-श्री राजेंद्र प्रसाद सिन्हा छत्तीसगढ़ी कहानी संग्रह में घटनाओं और पात्रों के माध्यम से ग्रामीण परिवेश और समाज की ज्वलंत समस्या को संवेदनात्मक के साथ प्रस्तुत किया है। हस्ताक्षर के संपादक-मनोज जायसवाल ने कहा- राजेंद्र सिन्हा की कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वह समयानुसार अपने पाठ को प्रस्तुत करने की क्षमता रखता है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डा.सुधीर शर्मा ने कहानीकार राजेंद्र प्रसाद सिन्हा एवम डॉ. खेदू भारती "सत्येश” कि विमोचित कृति के संदर्भ में कहा कि- तोर अगोरा म कहानी संग्रह में अलग-अलग प्रकार के रंग है,विधा है, संदेश है। कहानी विधा प्राचीन विधा है जिसका अलग ही महत्व है। तोर अगोरा म इस स्मृतिलोक के कहानी है। छत्तीसगढ़ की जिंदगी का, छत्तीसगढ़ी संस्कृति का, यहां की जन जीवन का, पारिवारिक पृष्ठभूमि का, रीति रिवाज व लोक जीवन का सजीव चित्रण का है। यथार्थ से आदर्शवाद जाना मुंशी प्रेमचंद की मोरल है। दाईज कहानी में आदर्श युवक की कहानी है। संवाद शैली की अधिकता है। जो रोचक होता है वही पाठक को बांधकर रखता है। परिवार, थर्ड जेंडर, कमेलीन, तोर अगोरा म, अंइठाहा ,दाईज पर सुंदर संवाद शैली के साथ लिखे हैं। छत्तीसगढ़ की धरती साहित्य की उर्वर भूमि है। भक्त होना आसान है पर आदमी बनना कठिन है । जिस दिन जागृत हो जाएंगे उसी दिन सफल हो जाएंगे। छत्तीसगढ़ी का प्रयोग हर घर में हो सभी बच्चे सीखेंगे। मातृभाषा की विश्वविद्यालय मां है। मां से बच्चा सीखता है ।
कार्यक्रम का
संचालन श्रीमती कामिनी कौशिक ने किया। आभार प्रदर्शन श्रीमती पुष्पलता इंगोले ने
की। कार्यक्रम में मुख्य रूप से जिला हिन्दी साहित्य समिति के संरक्षक गोपाल शर्मा, मदन
मोहन खंडेलवाल, आकाशगिरी गोस्वामी, नरेशचंद्र
श्रोति, कुलदीप सिन्हा, डॉ.
विजय पंजवानी, चन्द्रहास साहू, आरती
कौशिक, डा.माधुरी डड़सेना, माधुरी
मार्कण्डे, पुष्पा सिन्हा ,पूर्णिमा
कौशिक, प्रवीणा डोंगरे, संगीता
मानिकपुरी, ए.आर.इंगोले, तिलकदास मानिकपुरी, अंतरराष्ट्रीय
तबला वादक हीरालाल साहू, मदनमोहन दास, रामकुमार
विश्वकर्मा,दिलीप नाग, सेवक
राम नेले, जे. एल. साहू ,लालाराम
मगेंद्र, कृपाराम गजेंद्र, संतोष
श्रीवास्तव सम, संजय शर्मा, मुकेश
कुमार, अनिल कुमार मौर्य अनल, डॉक्टर
पल्लवी शुक्ला नूपुर ,डॉक्टर राखी कोर्राम, लक्ष्मी
नारायण सिन्हा, घनश्याम साहू, देवनाथ
साहू ,राजकुमार मिश्रा, कृपा
शंकर मिश्रा, यशकरण सिंह गजेंद्र, होला
राम परिहा, लोकेश प्रसाद,वेद
प्रकाश सिन्हा, रामसिंह मंडावी, संतोष
मंडावी, बी.एस. राजपूत, भूपेंद्र
मानिकपुरी, उत्तम कुमार गंगवीर, महेंद्र
कुमार राही मुख्य रूप से उपस्थित थे