आत्मा शाश्वत है - परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब

धमतरिहा के गोठ
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 संजय छाजेड़ 

परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी  महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पार्श्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज दिनांक 6 अगस्त 2025 को परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि आत्मा का स्वभाव है निज में विश्वास करना अर्थात स्वयं के ही शरण में रहना। यही आत्मा का अनुशासन है। तत्वों को समझकर भव भव के अज्ञान को दूर करना है। आत्मा ही आत्मा की वास्तविक शरण है। शरीर तो केवल एक पड़ाव है। जो अपने आत्मा को भूल जाता है वो चारों गति में भटकता रहता है और वो कहीं भी सुख नहीं पाता। लेकिन जो अपनी आत्मा को देख लेता है अर्थात आत्मा की वास्तविकता को जान लेता है वो संसार के भ्रमण से दूर हो जाता है। परमात्मा हमे हमारा वास्तविक स्वरूप बताते हुए साधु जीवन में जीना सीखते हैं। साथ ही माता की तरह जिनवाणी रूपी लोरी सुनकर आत्मा को चैन की नींद अर्थात शाश्वत सुख दिलाने का प्रयास करते हैं। आत्मा शाश्वत है ये अजर अमर है आत्मा ही शुद्ध स्वरूप है। अब इसे विषय कषाय के मैल से अशुद्ध नहीं करना है । तभी इस मानव जीवन की सार्थकता है। संसार में हम जब तक है तब तक कोई न कोई शत्रु भी है। किंतु अब ऐसा प्रयास करना है जब हम संसार से जाए तो कोई शत्रु न हो। जिनवाणी ही ऐसा माध्यम है। जिसके माध्यम से शत्रु को भी मित्र बना सकते है। जो काम शस्त्र नहीं कर सकता वो काम शास्त्र कर सकता है जिनवाणी में हमारे जीवन की सभी समस्याओं का समाधान है। केवल जरूरत है उसके प्रति श्रद्धा रखने की। हमारे जीवन में अपने धर्म ग्रन्थ के प्रति बहुमान, अहोभाव होना चाहिए। 


उत्तराध्ययन सूत्र के माध्यम से परमात्मा फरमाते है कि हरपल जाते हुए जीवन से अपनी आत्मा के लिए कुछ अच्छा काम करो। मानव जीवन हमारे पुण्य का ऋणी है। जीवन से प्रमाद को दूर करके आत्मा के मार्ग को प्रशस्त करना है। हमारा मन ही आत्मा को परमात्मा बना सकता है।

अपने मन से तीन विकृति निकालना है।

पहला है हटाग्रह - वस्तु को लेकर हमारे जीवन में हटाग्रह आता है। कोई ऐसी वस्तु जिसे पाने की इच्छा हम करते है लेकिन उसके जीवन बिना भी अच्छे से चल सकता है अथवा चल रहा है। ये वस्तु का आग्रह अर्थात हटाग्रह कहलाता है। हटबुद्धि जीवन के विनाश और दुर्दशा का कारण बन जाता है। जिसके जीवन से हटाग्रह दूर हो जाता है उसका जीवन आनंद पूर्वक व्यतीत होता है। 

दूसरा है कदाग्रह - विचारों के कारण कदाग्रह होता है। विचारों में मतभेद हो जाना या मैं सही हूँ , ये कहना तो सामान्य बात है। लेकिन मैं ही सही हूँ यह विचारों का आग्रह है। अहंकार के कारण कदाग्रह होता है। हमारा अहंकार हमें सत्य को स्वीकार करने नहीं देता। 

 तीसरा है पूर्वाग्रह - व्यक्ति या जीव के प्रति आग्रह पूर्वाग्रह कहलाता है। जीवन में विचारों का आग्रह पूर्वाग्रह कहलाता है। जीवन में आवश्यकतानुसार विचारों को स्वीकार करना चाहिए या छोड़ देना चाहिए। तभी जीवन सरलता पूर्वक चल सकता है। कार्यों के लिए विचारों का आना और उसे व्यक्त करना सामान्य बात है। लेकिन आवश्यक नहीं कि उसे स्वीकार किया जाए। किसी व्यक्ति के प्रति अपने मन में पहले से कोई विचार नहीं रखना चाहिए। क्योंकि   समय समय पर सामने वाले व्यक्ति का स्वभाव बदल सकता है। 


ये तीनों आर्तध्यान का कारण है। आर्तध्यान हमे तिर्यच गति में ले जाता है। वर्तमान में परिवार टूटने का प्रमुख कारण भी ये यही है।

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