संजय छाजेड़
परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि हमें चिंतन करना है कि आजतक हमने क्या किया। हमारी आत्मा को हम कैसे समझा सकते है। इस संसार के मेले में न जाने कितने सुख दुख हमने झेले है फिर भी कोई घबराहट नहीं हुई। जब जब नरक में मैं अर्थात मेरी आत्मा गई वहां भयंकर कष्टों को सहन किया। वहां पर परमाधामी देवों ने अनंत पीड़ा दी। त्राहि त्राहि करते हुए चीखते रहे लेकिन कोई बचाने वाला नहीं था। उसके बाद जब मेरी आत्मा पशु गति में गई, वहां पर पीठ में कोड़े खाते रहे। पक्षी बनकर डाल में घोसला बना कर रहना पड़ा। कभी ठंड से ठिठुरते रहे तो कभी गर्मी के ताप से जलते रहे। वहां से निकले तो देव या मनुष्य गति में आए। यहां आकर हम भोगों में लग गए। और अपना पुण्य कम करने लगे। अब हमें हमारी चेतना जागृत करना है और इस शरीर के मोह का त्याग करके आत्मा का मोह अर्थात आत्मविकास करना है। हमें गुरुभगवंतो के माध्यम से शरीर और आत्मा का भेद जानना और समझना है। अपने ज्ञान चक्षु को खोलने का प्रयास करना है ताकि आत्मा के परम लक्ष्य के प्राप्त कर सके। आजतक हमारी आत्मा अनंत सुख दुख झेलकर यहां पहुंचा है। अब इस प्रकार पुरुषार्थ करना है कि यह पुनः नरकगति, तिर्यच गति में न जाए। अब हमें सत्य को जानना है , मानना है साथ ही उसे जीवन में उतारना भी है । सत्य के आधार पर ही जीवन जीने का प्रयास करना है। ताकि आत्मानुभूति प्राप्त हो सके। इस उत्तराध्ययन सूत्र में बताया गया है कि हम किस प्रकार शुद्ध रूप से जीवन यापन कर सकते है। परमात्मा ने जो कहा उसे गणधर सूत्र में गूंथने का काम करते है वहीं आगम कहलाता है। गणधर चार ज्ञान के धारक होते है। किंतु फिर भी आगम की रचना करते समय गणधर पहले मंगलाचरण करते है। मंगलाचरण में आत्मपुरुषो को नमस्कार किया जाता है। अर्थात चार ज्ञान के धारक भी नमस्कार करते है इससे उनका विनय गुण प्रकट होता है। जिनके प्रति हमारे मन में आकर्षण होता है हम उनको नमस्कार करते है। इस संसार में पुण्यशाली को नमस्कार करना आसान है जबकि गुणशाली व्यक्ति को नमस्कार करना कठिन अर्थात दुर्लभ है। और इससे भी कठिन है गुण प्राप्ति के लिए किसी को नमस्कार करना। किसी के गुण, सरलता और सहजता को प्राप्त करने के लिए नमस्कार करना सबसे कठिन है। परमात्मा को नमस्कार करते उनके गुणों को मांगना चाहिए। मंगलाचरण में हमे परमात्मा के गुणों को देखने और और उसे ग्रहण करने का प्रयास करना है। उत्तराध्ययन सूत्र का पहला उद्देश्य है पाप से मुक्त होना। आत्मा का लक्ष्य संसार से मुक्त होना है किंतु उससे पहले जीव को विषय , कषाय को दूर करके पाप को कम करना और धीरे धीरे पाप से मुक्त होना है। जीवन में पाप को कम करने के लिए पुण्य करना है। क्योंकि अगर पाप और पुण्य दोनों एकसाथ करते रहे तो पाप ही बढ़ेगा। क्योंकि हम जितनी रुचि और एकाग्रता से पाप कार्य करते है उतनी एकाग्रता से पुण्य नहीं करते। यह जीव हरक्षण हरपल पाप कार्य करते रहता है किन्तु ऐसा कार्य नहीं करते जिसके पाप को कम कर सके या उससे बच सके। जीवन में आवश्यकता, अपेक्षा कम होना किंतु प्रसन्नता, शांति, सहजता और सरलता जीवन में बढ़ रहा है इसका मतलब है जीवन में धर्म ठीक चल रहा है। वास्तव में धर्म के लिए क्रिया एक माध्यम है किंतु सही क्रिया के बिना धर्म भी नहीं हो सकता। हमारा जीव अगर पाप को छोड़ दे तो अपने आप वह पुण्य से जुड़ सकता है।