संजय छाजेड़
धमतरी । प्रदेश में भाजपा सरकार स्थापित होने के बाद से भ्रष्टाचार मुक्त, सुशासन की बयार चल रही है। लेकिन पूर्ववर्ती सरकार के कार्यकाल में जिन अधिकारियों ने मिलीभगत कर लाखों, करोड़ों रूपये का नुकसान शासन को पहुंचाया है, उसके जिम्मेदार अधिकारी पर कार्यवाही तो धीरे-धीरे हो रही है, लेकिन ऐसे भ्रष्टाचार में लिप्त अन्य अधिकारी अभी भी दोहरी नीति अपनाकर अपने को प्रतिष्ठापूर्ण पदों पर स्थापित रखने में सफल हैं जिनके द्वारा किये गये भ्रष्टाचार, पद का दुरूपयोग आज भी चर्चित है। इन्हीं श्रृंखलाओं में धमतरी में कलेक्टर के पद पर पदस्थ पी एस एल्मा द्वारा न सिर्फ डीएमएफ एवं सीएसआर फंड के दुरूपयोग का मामला पीएमओ कार्यालय तक पहुंचा है वहीं अब इनके संबंध में पता चला है कि उन्होंने बेमेतरा कलेक्टर का पदभार संभालने के बाद नियम विरूद्ध काबिलकाश्त सहित अन्य कृषि भूमि को भी विक्रय करने की अनुमति दी है। उसमें शासन के नियमों की पूरी तरह अनदेखी की गई है और रिकॉर्ड तोड़ अनुमति इनके द्वारा अल्प कार्यकाल के दौरान दिया गया है। हद तो यह है कि आदिवासी भूमि को विक्रय करने के लिये धमतरी में भी इन्होंने अनेक ऐसे लोगों को अनुमति दी है जिसकी आग अभी तक जिले में फैली हुई है।
जिला पंचायत में सीईओ का पदभार संभालने के चंद वर्षों बाद इन्होंने पुन: कलेक्टर का पदभार राज्य शासन के निर्देश पर संभाला और इसके बाद से उन्होंने अपने पद का दुरूपयोग करते हुए पूर्ववर्ती सरकार की महती योजना में से एक स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम विद्यालय भवन निर्माण के लिये नियम विरूद्ध बिना निविदा निकाले और अन्य परिपक्व शासकीय एजेंसियों के रहते करोड़ों रूपये के कार्य को चार ग्राम पंचायतों के साथ करवाने का निर्णय लिया जिसका जिले में भारी विरोध हुआ था और इस कार्य में उन्होंने डीएमएफ, सीएसआर फंड का खुलकर दुरूपयोग किया और अपने एक रिश्तेदार को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से ही लगभग 10 करोड़ रूपये का भवन निर्माण चार ग्राम पंचायतों को दिया गया जिनमें से एक पंचायत में उक्त अधिकारी का साला प्रतिनिधि था। इनका यह निर्णय समूचे जिले में विरोध का कारण बना। अच्छे खासे अति प्राचीन महर्षि श्रृंगि ऋषि के नाम पर स्थापित स्कूल भवन को तुड़वाकर वहां स्वामी आत्मानंद अंग्रेजी माध्यम स्कूल भवन बनवा दिया गया। अपने कार्यकाल के दौरान इन्होंने नगरी के अलावा मगरलोड, धमतरी में भी करोड़ों की लागत से निर्माण कार्य ग्राम पंचायतों को एजेंसी बनाकर करवाया गया है। सूत्रों का कहना है कि अपने स्वार्थपूर्ति के लिये उक्त पूरे कार्य को अंजाम दिया गया है। लोक निर्माण विभाग, पीएचई, आरईएस, सिंचाई विभाग आदि के इंजीनियर जिले में उपलब्ध होने के बावजूद इस कार्य को ग्राम पंचायतों से करवाकर एक नया कीर्तिमान स्थापित किया है। यह मामला संभवत: प्रदेश का पहला मामला है जहां करोड़ों के कार्य को ग्राम पंचायतों के सरपंचों के माध्यम से करवाया गया है। इसमें इस वक्त यहां पदस्थ अधिकारियों ने भी तत्कालीन कलेक्टर के दबाव में आकर नियम विरूद्ध ग्राम पंचायतों के तत्कालीन सरपंचों, सचिवों से करोड़ों की राशि नगद आहरण किया है जबकि पंचायती राज अधिनियम में स्पष्ट प्रावधान है कि 5 हजार से अधिक की राशि नगद नहीं निकालना है। अब इसकी शिकायत एंटी करप्शन ब्यूरो से किये जाने की खबर है।
तत्कालीन कलेक्टर ने अपने कार्यकाल के दौरान अपने सामाजिक बंधुओं की जमीनों को भूमाफियाओं को बिकवाने में महारथ हासिल की। इनके कार्यकाल में नियम विरूद्ध ऐसे-ऐसे आदेश किये गये हैं जो आज भी जिले में चर्चित हैं। सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त जानकारी के अनुसार एक ऐसा सनसनीखेज मामला प्रकाश में आया जिसमें तत्कालीन कलेक्टर पी एस एल्मा ने विक्रेता चेतन नाग पिता मनिहार नाग जबकि क्रेता का नाम उक्त आदेश में नहीं है। लेकिन इनका आदेश है कि 6 माह के भीतर सामान्य वर्ग के व्यक्ति के नाम से पंजीयन कार्यवाही करवा लिया जायेगा अगर नहीं हुआ तो यह आदेश निरस्त हो जायेगा। लेकिन उक्त जमीन का पंजीयन लगभग डेढ़ वर्ष बाद हीरल राठौर के नाम पर कराया गया। जबकि उक्त संबंध में विधानसभा में यह मामला उठा तो जानकारी दी गई कि क्रेता चेतन नाग है और विक्रेता भी चेतन नाग है। आश्चर्य की बात यह है कि सूचना के अधिकार के तहत पुन: जानकारी मांगी गई तो यह जानकारी दी गई कि विक्रेता चेतन नाग एवं क्रेता शासन को बताया गया जो अपने आप में एक मिसाल है। खबर तो यह भी है कि इन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान अनेक गैर आदिवासियों को आदिवासी समाज के सदस्यों की भूमि विक्रय करने की अनुमति दी जिससे छग भू राजस्व संहिता के नियमों का खुला उल्लंघन होता है। इस नियम के तहत आदिवासियों की भूमि को विक्रय करने की प्रक्रिया चलाई जाती है जिसके तहत यह देखा जाना जरूरी होता है कि संबंधित विक्रेता ने जिस शर्त पर जमीन विक्रय करने की मांग की है वह वास्तव में सहीं है अथवा गलत। इसे लेकर कलेक्टर कार्यालय में यह आवेदन पेश होता है तो उसकी जांच के लिये निचले क्रम में पहुंचती है किंतु निचले क्रम में पदस्थ कुछ तथाकथित पटवारियों के द्वारा उक्त भूमि का स्थल मुआयना, विक्रय करने के पश्चात भू राजस्व अधिनियम के तहत 5 एकड़ सिंचित, 10 एकड़ असिंचित भूमि है कि यह देखा जाना जरूरी होता है। लेकिन इसका भी पालन नहीं किया और ऐसे ही आदिवासी समाज के सदस्यों ने जो भूमि गैर आदिवासी को विक्रय की है, विक्रय करने के बाद उनके पास जीविकोपार्जन के लिये 5 एकड़ भूमि तक नहीं बची है जिससे आदिवासी समाज में भारी नाराजगी है और वे इसे लेकर जमीनी लड़ाई लडऩे को भी तैयार हो रहे हैं।
बताया जाता है कि धमतरी में अपने पद का दुरूपयोग करने के नाम पर चर्चित तत्कालीन कलेक्टर ने यहां से स्थानांतरण पश्चात बेमेतरा जिले का पदभार संभाला जिन्होंने वहां के अपने अल्प समय के कार्यकाल में भी आदिवासियों की भूमि, यहां तक काश्तकारी भूमि को भी विक्रय करने की अनुमति अनेक लोगों को दी है। इसमें उक्त अधिकारी का सुपुत्र भी शामिल है। जबकि उसके सुपुत्र द्वारा पिछले माह एक सूचना अखबार(पॉयनियर नहीं) में जारी कर उसके नाम पर ग्राम मरादेव में स्थित भूमि को विक्रय करने की घोषणा भी की गई है। यह भूमि के संबंध में पता चला है कि उक्त स्थल पर काबिज आदिवासी समाज के सदस्य चेतन नाग से यह भूमि उक्त अधिकारी के सुपुत्र ने खरीदी है। चंद महीनों बाद उक्त भूमि को विक्रय करने हेतु प्रक्रिया जारी है। उक्त अधिकारी ने एक ओर धमतरी में रहते हुए अपने सुपुत्र के नाम पर यह जमीनी खरीदी। इसके पश्चात बेमेतरा जिले में पदभार संभालने के बाद उन्होंने अपने सुपुत्र के नाम पर जमीन खरीदी है। इस तरह के शासकीय कार्य में हेरफेर, डीएमएफ फंड में भ्रष्टाचार की शिकायत प्रधानमंत्री कार्यालय को भेजी गई है। लेकिन अपने आईएएस अधिकारी को बचाने के लिये संबंधित अधिकारी जांच में हीला-हवाला कर उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से लाभ पहुंचा रहे हैं जिससे न खाऊंगा, न खाने दूंगा, सुशासन, जीरो टॉलरेंस का मंसूबा फेल होते नजर आ रहा है। अनेक जागरूक लोगों ने इसकी उच्च स्तरीय जांच जो रद्दी के खाते में डाली गई है, उसमें तेजी लाने की मांग शासन, प्रशासन से की है।
उल्लेखनीय रहे कि आदिवासियों की भूमि को गेैर आदिवासियों को विक्रय करने के इस खेल में जिले की तत्कालीन कलेक्टर सुश्री नम्रता गांधी ने भी कुछ आदेश ऐसे किये हैं जिसमें छग भू राजस्व संहिता के नियमों की अनदेखी करते हुए कुछ चुनिंदा भूमाफियाओं को अनुमति दी है। यह मामला भी अब जांच के दायरे में आ चुका है। इन्हीं सब तथ्यों को देखते हुए आदिवासी समाज लामबद्ध हो चुका है और आने वाले समय में एक जबरदस्त आंदोलन का शंखनाद किये जाने की घोषणा की है। इनकी मांग है कि आदिवासी समाज के सदस्यों की विक्रय की गई भूमि की उच्च स्तरीय शीघ्र जांच कराई जाये, दोषी अधिकारियों पर कार्यवाही की जाये और आदिवासी समाज के सदस्यों की खरीदी गई भूमि को उनके जीविकोपार्जन के लिये वापस दिलाई जाये। इस हेतु सर्व आदिवासी समाज द्वारा एक शिकायत कलेक्टर सहित विभिन्न विभागों के मंत्रियों को प्रेषित की गई हेै।
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