बात उन दिनों की है जब नहर से खेतों में पानी नहीं पहुंचने के कारण लगातार अकाल का सामना करना पड़ रहा था। लोग गरीबी, भुखमरी एवं पलायन जैसे समस्याओं से प्रत्येक वर्ष जूझ रहे थे। प्रतिवर्ष गंगरेल बांध का पानी नहर के माध्यम से गांव के लिए जाता जरूर था। लेकिन ऊपर के गांव वाले उस पानी को गोंडखपरी गांव के खेतों में आने से रोक देते थे। यह स्वाभाविक प्रक्रिया है जब तक ऊपर के खेतों में सिंचाई नहीं होगा तब तक नीचे के खेतों तक पानी आ ही नहीं सकता। जब पानी की जरूरत नहीं होती थी तब आखिरी में इस गांव में पानी आता था जिसका कोई भी औचित्य नहीं था। खेती किसानी के समय अन्य गांव वालों से पानी के लिए लड़ाई– झगड़ा आम बात हो गई थी। रात-रात भर नहर की रखवाली करने के बावजूद भी खेतों में पानी नहीं आने से प्रतिवर्ष अकाल जैसे स्थिति निर्मित हो गई थी। अनावश्यक दुश्मनी पड़ोसी गांव वालों से पानी के कारण हो गया था।
इस गांव में बरसात के पानी के ऊपर ही यहां की खेती– किसानी निर्भर हो गया था। ऐसी स्थिति में गांव के परस राम ध्रुव, भगवान सिंह ध्रुव, कुशाल सिंह ध्रुव, अस्थिर सिंह ध्रुव,हेम सिंह ध्रुव, दधिबल सिंह ध्रुव, रतन सिंह ध्रुव, विशाल सिंह ध्रुव, चिंताराम ध्रुव, घनाराम ध्रुव , सुंदर सिंह ध्रुव ,चुरामन सिंह ध्रुव सभी मुखिया लोगों ने विचार किया की क्यों ना हम खेतों में सिंचाई हेतु पानी की व्यवस्था स्वयं करें। इस हेतु सन 1975 में गांव में बैठक हुआ। तय हुआ कि लगभग एक किलोमीटर दूर दशरमा और गोंडखपरी के बीच में बहने वाला खोरसी नाला के पानी को लिफ्ट करके गांव के तालाब तक लाया जावे। चूंकि खोरसी नाला का बहाव बहुत नीचे से है। इसलिए वहां के पानी को गांव के तालाब तक एक किलोमीटर तय कर ऊंचाई तक लाना एक बहुत बड़ी चुनौती थी। दूसरा खोरसी नाला से तालाब तक गांव के किसानों के कृषि भूमि थी।
सामाजिक एकता की मिसाल हमने इस गांव में देखा कि सभी किसानों ने अपनी जमीन नहर बनाने हेतु निशुल्क दे दिए। गांव वालों का जुनून इतना की गांव भर के लोगों ने श्रमदान कर खोरसी नाला से गांव के तालाब तक लगभग एक किलोमीटर लंबी नहर बना लिए। इसके लिए शासन प्रशासन से बिल्कुल मदद नही लिए, न किसी इंजीनियर ने सहयोग किया , न ही किसी भी तरह कोई आर्किटेक्ट का सहयोग लिए। प्रत्येक घरों से चंदा– बरार कर सिंचाई हेतु मोटर पंप क्रय किए और गांव के खेतों में स्वयं के सिंचाई परियोजना से सिंचाई शुरू हो गया।
उस दिन से आज तक मैंने कभी भी उस गांव में अकाल पड़ते नहीं देखा। बिना किसी सरकारी सहायता के गांव वालों के आपसी सूझबूझ से इतना बड़ी सिंचाई परियोजना का सफल संचालन होते मैंने जीवन में पहली बार देखा है।
जी हां मैं बात कर रहा हूं बलौदाबाजार जिला मुख्यालय से लगा हुआ स्वालंबन की मिसाल मेरा अपना गांव आदिवासी गोंड बाहुल्य गोंडखपरी का जहां 99% गोंड समाज के लोग रहते हैं। उस समय गांव में एक घर का नाई, एक घर का रावत, एक घर के केवट एवं एक घर का सतनामी समाज के लोग रहते थे। भले ही आज उनकी संख्या भाई बंटवारा के कारण बढ़ गया है। ब्राह्मण, धोबी और मेहर समाज के लोगों को सामाजिक, धार्मिक कार्यों के लिए अभी भी बाहर से लाते थे। अन्य समाज के लोग यहां नहीं है। इस गांव की एकता को मैंने देखा की यहां के लोगों ने श्रमदान कर स्कूल बना लिए, श्रमदान करके कुआं खोद लिए, श्रमदान करके महामाया बनाए, श्रमदान से मनोरंजन भवन बनाए, महिलाएं महिला मंडल भवन श्रमदान से बनाए एवं श्रमदान करके थोड़ा-थोड़ा जमीन दान करके एक तालाब का भी निर्माण इन सबने किया है। इस गांव में सहकारिता का अद्भुत मिसाल देखने को मिलता है कि यदि कोई किसान खेती किसानी में पिछड़ गया तो गांव वाले उनकी मदद करते हैं।
आसपास के गांव में अवारा पशुओं के डर से केवल साल में केवल एक बार खरीफ के फसल ही लिए जाते हैं । लेकिन यह गांव ऐसा है कि यहां खरीफ एवं रबी दोनों फसल लेकर दोहरा लाभ लेते हैं। इसका कारण है की यहां के गांव का सरहद के चारों तरफ श्रमदान से निर्मित सुरक्षा घेरा लगा हुआ है। गांव के सरहद में घुसने का केवल एक ही रास्ता है। जिसके कारण अन्य गांव के मवेशी यहां के फसलों को नुकसान पहुंचा नहीं सकता।
आज यह गांव अपने सिंचाई परियोजना के 50 वर्ष पूर्ण होने पर गोल्डन जुबली वर्ष मना रहा है। गोल्डन जुबली वर्ष में महामाया जीर्ण– शीर्ष होने के कारण श्रमदान से जीरोद्धार करने का फैसला लिए हैं। फिजूल खर्ची रोकने पिछले 18– 19 वर्षों से सामूहिक सामाजिक विवाह का कार्यक्रम निरंतर आयोजित हो रहे हैं। जिससे आर्थिक समृद्धि की ओर गांव बढ़ रहा है। स्वच्छ भारत मिशन जो आज हम देख रहे हैं । वह इस गांव में वर्षों से चल रहा है। गांव के गलियों, तालाबों की साफ– सफाई का जिम्मा यहां का युवा वर्ग श्रमदान के माध्यम से करते आ रहा है। दंड के प्रावधान होने के कारण कोई भी कहीं भी गंदगी फैला नहीं सकता है।
यहां जन्म, विवाह, मृत्यु संस्कार सहित सुख– दुख के कार्य किसी व्यक्ति विशेष के लिए बोझ नहीं होता। बल्कि पूरे गांव समाज के लोग मिलजुल कर चावल ,दाल लकड़ी ,छेना सभी तरह से तन– मन – धन से सहयोग कर उनके कार्य को खुशी– खुशी संपन्न करते हैं। गांव में जरूरतमंद लोगों के लिए अनाज बैंक, जरूरतमंदों को आर्थिक मदद के लिए सामाजिक कोष वर्षों से स्थापित है। ऐसे ही गांव के महिला मंडल, यहां तक गांव के मंडावी गोत्र, छेदैहा गोत्र का अपना-अपना सामाजिक कोष स्थापित है जो जरूरत पड़ने पर लोगों की मदद करते हैं।
पर्यावरण संरक्षण के लिए यह गांव शुरू से ही विख्यात है। यहां कोई भी किसी भी पेड़ों को नहीं काट सकता। यदि कोई काटेगा तो उन्हें दंडित किया जाता है।
इन सबका परिणाम यह हुआ कि इस गांव में आसपास के गांवो की अपेक्षा अधिक पढ़े-लिखे बच्चे आगे आए हैं।जिसके कारण शासकीय संस्थानो में आसपास की तुलना में सबसे अधिक बच्चे विभिन्न विभागों में अपनी सेवाएं दे रहे हैं और यह गांव अपने आप में एक आदर्श गांव के रूप में विकसित हुआ है। आज हमें जरूरत है ऐसे गांव को प्रोत्साहित करने की जिससे यह गांव उन्नति के शिखर तक आगे बढ़े और अन्य गांव भी इससे प्रेरणा लें।