दो दिवसीय जल-जगार महोत्सव संपन्न, छोड़ गया अनसुलझे सवाल

धमतरिहा के गोठ
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संजय छाजेड़ 

धमतरी 8 अक्टूबर। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की श्रेणी में घोषित किया जाने वाला जल-जगार महोत्सव तो संपन्न हो चुका, लेकिन इसमें अनेक अनसुलझे सवाल छोडक़र स्थानीय लोगों को यह कहने पर मजबूर किया कि यह कार्यक्रम शासन प्रशासन की एक कड़ी थी जिससे आम लोगों को कोई लाभ नजर नहीं आया। कार्यक्रम के चकाचौंध में यह सवाल उठते रहे जिसे लेकर लोगों ने मीडिया में भी अपनी व्यथा बताई। इस कार्यक्रम का बहिष्कार कांग्रेस पार्टी द्वारा किया गया था। पत्रकार वार्ता में कांग्रेस के नेताओं ने जिला प्रशासन पर भारी चंदा उगाही का आरोप लगाया जबकि आयोजक के द्वारा इससे साफ इनकार किया गया। लेकिन चंदा होने की बात को भाजपा के एक नेता ने भी भरे मंच से कहकर पार्टी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि आखिर यह चंदा कहां गया। जिले के एक वरिष्ठ अधिकारी ने तो इस बात को स्वीकारा भी कि हां, कार्यक्रम को लेकर चंदा वसूली की गई, लेकिन किसके कहने पर की गई, इस बात की जानकारी मुझे नहीं है। अब जबकि कार्यक्रम समाप्त हो चुका है और कार्यक्रम के नाम पर वसूली की रकम को लेकर एक बार फिर विवाद की स्थिति निर्मित हो सकती है।

दो दिवसीय जल-जगार महोत्सव को लेकर पिछले महीने से कवायद शुरू की गई थी। इसके व्यापक प्रचार प्रसार के लिये भारी तामझाम किया गया था। इस कार्यक्रम को लेकर प्रिंट मीडिया के लोगों को भी कोई तवज्जो नहीं दिया गया। यह कार्यक्रम को आयोजित करने वाले लोगों ने चुपचाप इस कार्यक्रम की रूपरेखा तय की और साथ ही साथ शहर के राईस मिलरों, खनिज, सहित अनेक विभागों के द्वारा इसके लिये व्यापक पैमाने पर चंदा किया गया। लोगों का यह कहना था कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के इस कार्यक्रम को लेकर कुछ शासकीय फंड भी आबंटित किया गया था। जब यह फंड स्वीकृत किया गया तो फिर चंदा उगाही की क्या आवश्यकता थी। सबसे गंभीर मामला यह रहा कि जलाभिषेक के समय जितने भी अतिथि वहां उपस्थित थे, उन्होंने जूता उतारकर इस कार्यक्रम में शामिल होने की जुर्रत महसूस नहीं की। और तो और पांपलेट जो छपाये गये उसमें शिवजी के मंदिर को नीचे एवं नेताओं की फोटो को इसके ऊपर लगाकर धर्म से जुड़े लोगों को काफी नाराज किया है जिसकी दबे जुबानों में आज भी निंदा की जा रही है। कार्यक्रम के फोटोग्राफ्स इस बात के चश्मदीद गवाह है जिसमें जिला प्रशासन की लापरवाही के चलते जलाभिषेक के समय जूता पहनकर कार्यक्रम की शुरूवात की गई।

रविशंकर सागर परियोजना के अधिकारियों द्वारा ड्रोन एवं रंगबिरंगी लाईटें लगाकर जिलेवासियों को अपनी ओर आकर्षित करने का असफल प्रयास किया गया। एक ओर कार्यक्रम को सफल बनाने का प्रयास किया गया वहीं दूसरी ओर गरीब लोगों की झोपडिय़ों को इसलिये तोड़ा गया कि वे आवागमन में बाधक हो रहे हैं। ऐसे लोगों ने कहा कि यहां कार्यक्रम के नाम पर अधिकारियों की नादिरशाही दिखाई दी। हद तो यह है कि बीते माह गणेशोत्सव के अवसर पर डीजे को पूरी तरह बंद करवाकर डीजे व्यवसायियों को लाखों रूपये की हानि पहुंचाई गई, वहीं जल जगार महोत्सव में जिम्मेदार जिले के अधिकारियों ने गंगरेल से 100 मीटर की दूरी पर देर रात तक डीजे बजाया, जिसे लेकर भी डीजे व्यवसायियों एवं गणेशोत्सव समिति के सदस्यों ने यह कहा कि जिला प्रशासन जो कुछ भी निर्णय लेता है, उसका पालन हर किसी को हर समय किया जाना चाहिये किंतु न्यायालय का आदेश बताकर गणेशोत्सव पर्व पर डीजे पर प्रतिबंध लगाया वहीं दूसरी ओर जिला प्रशासन ने खुद डीजे बजाकर न्यायालय के आदेश की अवहेलना की है। जल जगार महोत्सव के अवसर पर जिलेवासियों को अपनी ओर रिझाने की भरपूर कोशिश की गई थी। लेकिन जितना तामझाम किया गया है, उसके अनुसार जिलेवासियों की उतनी उपस्थिति दिखाई नहीं दी जिससे भी यह जल जगार महोत्सव विवादों के घेरे में आ रहा है।

जल-जगार महोत्सव का मुख्य उद्देश्य पानी के बचत को लेकर लोगों में संदेश पहुंचाने किया जाना बताया गया है। लेकिन असली सोख्ता एवं वॉटर हार्वेस्टिंग का काम करने वाली महानदी एवं सहायक नदियों से जिले का वॉटर लेवल संतुलित रहा है। लेकिन जबसे रेत माफियाओं द्वारा नदियों से रेत की निकासी प्रारंभ हुई है, तबसे धमतरी जिले का वॉटर लेवल दिनोंदिन गिरता जा रहा है। यदि नदियों से रेत का अंधाधुंध निकासी एवं परिवहन को रोकने के लिये उपाय होता तो शायद जल जगार महोत्सव जैसे आयोजन की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। इसके जिम्मेदार भी कुछ अधिकारी हैं जिन्होंने रेत माफियाओं को खुली छूट दे रखी है। आज भी प्रतिबंधित अवधि में रेत, मुरूम, गिट्टी की अवैध निकासी की जा रही है जिस पर जिला प्रशासन हाथ पर हाथ धरे तमाशा देख रहा है। कुल मिलाकर दो दिवसीय जल जगार महोत्सव का समापन तो अति विशिष्ट व्यक्तियों के उपस्थिति में संपन्न करा लिया गया और अपनी पीठ भी थपथपा ली गई। लेकिन इस कार्यक्रम से जिलेवासियों को दूर रखा गया जो कि इतिहास के पन्नों में सदा याद रखा जायेगा। अब सवाल यह उठता है कि जल-जगार महोत्सव के अवसर पर चंदा करने वाले अधिकारियों के खिलाफ शासन द्वारा क्या कोई समिति बनाकर इसकी जांच करवाई जायेगी अथवा नहीं, यह तो भविष्य के गर्त में छुपा है, परंतु जल जगार महोत्सव में चंदा वसूली से भाजपा की साख पर बट्टा लग रहा है। अब देखना है कि इस मामले को किस तरह निपटाया जाता हेै। जिस प्रकार चंदा वसूली की गई है, उसको भुनाने की ताक में बैठे कांग्रेसजनों द्वारा इसे आगामी नगरीय निकाय चुनाव में मुद्दा बनाया जा सकता है।

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