संजय छाजेड
धमतरी। परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म सा ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि हे परमात्मा संभव नाथ आप तो असंभव को संभव करने वाले है। अब आप ही मेरे सही घर का पता बता दो। न जाने मैं कब से इस संसार में भटक रहा हू। अब तो इतनी कृपा कर दो की मैं अपने वास्तविक संबंधों से अर्थात उनसे मिल जाऊं जिनसे मिलने के बाद किसी और से मिलने की चाह न रहे,
मैं इस जग को जानने के चक्कर के स्वयं को भूल गया हू। मानव तन पाकर परमात्मा को भूल गया हू। ये संसार एक मायानगरी है जहां मैं फंस गया हू। मुझे अब आप ही इस संसार से निकालिए। मैं तो सिद्धों के कुल का हू अर्थात भव्य आत्मा हूं। लेकिन फिर भी निगोद में जाकर बस गया हूं। इसलिए नरक जैसा दुख पा रहा हूं। हे परमात्मा आप ही मुझे इस दुखो के ताप से बचा सकते हैं। मैने सोचा था मैं देवलोक में जाकर सुख ही सुख को प्राप्त करूंगा। अपार वैभव पाऊंगा। लेकिन मैं अपने कर्मो के कारण इस संसार में दुख पा रहा हूं। एक रोटी के लिए जिनको डंडे पड़ते हैं ऐसे तिर्यंच भवो के दुखो को मैंने भी भोगा है। संसार में बहुत भीड़ है। अब मुझे अपना वास्तविक स्थान अर्थात मोक्ष तक पहुंचना है। ज्ञानी कहते है अपनी विवेक की दृष्टि को खोलना है। अपने वास्तविक स्वरूप को अर्थात निज आत्मा को देखना है। अपने ही अंदर सुख का सिंधु है। स्वयं के अंदर आनंद का भंडार है। और हम इसे बाहर खोज रहे है। अपने आत्मा को देखते ही संसार की भटकन से हम मुक्ति पा सकते है। इसलिए हे परमात्मा आप मेरी आत्मा से मेरा वास्तविक परिचय करा दीजिए। हमे विचार करना है। हम तत्वों को जानते है लेकिन उसे जीवन में उतारने का प्रयास करना है। लेकिन ज्ञानी कहते है तत्वों को जानकर उसे पहले जांचने का काम करना चाहिए और उसके बाद जीवन में उतारने का प्रयास होना चाहिए। परमात्मा के सिद्धांतो को अपने जीवन में उतारना चाहिए जीवन सफल हो जायेगा। सिद्धांत हमेशा एक पक्षीय होना चाहिए। लेकिन वर्तमान में हम अपनी सुविधानुसार सिद्धांत बना लेते है। और यही गलती संसार में भटकन का कारण है। जीवन में दूसरो के उदाहरण से सीखकर सिद्धांत बनाया जा सकता है। लेकिन किसी सिद्धांत से उदाहरण नही बनाया जा सकता। हमे सार्थक प्रयास करते हुए सिद्धांत बनाना चाहिए तभी जीवन को सही दिशा मिल सकती है। हमेशा ऐसे सिद्धांतो का निर्माण करना चाहिए जिससे स्वयं के साथ दूसरो का भी उद्धार हो सके। हम पड़ोसीए परिवार सहित पूरे संसार की चिंता हमेशा करते है लेकिन अपनी आत्मा की कभी चिंता कभी नही करते। हम जीवन रूपी तोते की जितनी भी जतन कर ले लेकिन एक दिन इस शरीर को छोडक़र आत्मा चला ही जाएगा। इसलिए हमे उसे प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए जो नित्य है शाश्वत है। जीवन में कभी भी परमात्मा के बनाए सिद्धांतो पर प्रश्न नही उठाना चाहिए। क्योंकि परमात्मा के सिद्धात हमारा कल्याण करने वाला है।