संजय छाजेड़
परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि ये मानव जीवन बहुत ही दुर्लभ है जो हमे मिला है। ये संसार क्षणभंगुर है। और हमारा मन इस संसार के जड़ पदार्थो के लालच में फंसा हुआ है। जबकि संसार की प्रत्येक वस्तु अनित्य है , नाशवान और असत्य है। यह तन मिट्टी का एक खिलौना है। इस नश्वर तन को साफ करने से कोई लाभ नहीं होने वाला है। इस संसार में जिसने भी तन अर्थात शरीर का मोह छोड़ा उसने ही मुक्ति सुख को प्राप्त किया है। ज्ञानी कहते है हमे मेरा तेरा छोड़कर प्रभु परमात्मा में अपना ध्यान लगाना चाहिए। अपने मन मंदिर को शुद्ध और निर्मल करके भावो की ज्योति जलाना है। तभी इस नश्वर संसार से मुक्ति की राह मिल सकती है। हे मानव इतना तो सोच की तुझे आगे कहा जाना है। इस संसार से जाते समय क्या छोड़ना और क्या साथ ले जाना है। क्योंकि इस काल अर्थात समय से कोई बच नही पाया है। हमारे साथ हमारे कर्म ही जायेंगे। और उसी कर्मो के आधार पर आने वाले भव में उसका फल मिलेगा। हमारे द्वारा किया गया अच्छा कर्म हमे आने वाले भव में साधन, सुख और सुविधा दिला सकता है। जीवन में अनुकूलता दिला सकता है। हमे विचार करना है कि मैं आत्मा हू मुझे केवल अपने आत्मा की चिंता करनी है। क्योंकि हर भव में केवल शरीर बदलता है आत्मा वही रहती है। जिनशासन में जिनवाणी श्रवण की व्यवस्था केवल एक व्यवहार या परंपरा के लिए नही है। बल्कि इसके माध्यम से मानव जीवन की दुर्लभता को जानना और समझना है। जीवन में नित्य या शाश्वत सत्य को स्वीकार करने के लिए जिनवाणी आवश्यक है। जिनवाणी जीवन जीने का आधार है। जिनवाणी रूपी नाव के माध्यम से हम संसार सागर को पार करके अपनी आत्मा को मोक्ष रूपी मंजिल तक पहुंचा सकते है। चिंतन करने के लिए चिंता की आवश्यकता नहीं है। बल्कि चिंतन इसलिए करना है ताकि चिंता न करना पड़े। क्योंकि चिंता हमे चिता अर्थात मृत्यु तक पहुंचा सकता है जबकि चिंतन हमारी चेतना को जगा सकता है। चिंतन हमे चैतन्य अर्थात परमात्मा तक पहुंचा सकता है। अहंकार व्यक्ति के जीवन के पतन का कारण बन जाता है। अहंकार हमारे जीवन को बेकार कर देता है। ज्ञानी कहते है जीवन से अहंकार को निकालकर संस्कार को स्थान देना चाहिए। क्योंकि संस्कार ही हमारे जीवन को ऊर्जावान बना सकता है।
ज्ञानी भगवंत कहते है
ना गाती है न गुनगुनाती है
ये मृत्यु है, बिना बताए आ जाती है
हम जीवन भर इस अनित्य शरीर को सजाते है। जबकि शरीर नाशवान है। हम चाहे इसे जितना भी सजा ले किंतु एक दिन यही शरीर के लिए सजा का कारण बन जाता है। संसार का एक मात्र सत्य है मृत्यु। जीवन में कब मृत्यु का क्षण आ जाए पता नही। इस लिए जीवन में मृत्यु के आने से पहले शरीर की चिंता छोड़कर आत्मा को सजाने का प्रयास करना है।