तपस्या अपने कर्मो की निर्जरा का कारण बनता है- परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा.

धमतरिहा के गोठ
0



 


संजय छाजेड़ 

परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि ज्ञानी भगवंत कहते है कि हमे अपने आत्मा में लगे कर्मो की निर्जरा के लिए तप करना चाहिए । तपसा च निर्जरा अर्थात तपस्या अपने कर्मो की निर्जरा का कारण बनता है। व्यवस्था होते हुए भी अपनी इच्छाओं को रोकते हुए तप करना चाहिए। किसी के पास भोजन की व्यवस्था न हो इसलिए उसने उपवास कर लिया तो यह कर्मो की निर्जरा का कारण नही बन सकता। जैन दर्शन के अनुसार बारह प्रकार के तप होते है। छः बाह्य तप एवम छः अभ्यंतर तप। जिसमे अनशन अर्थात उपवास करना अर्थात आहार का त्याग करना। अपने शरीर को तपस्या के माध्यम से तपाकर अपनी आत्मा में लगे कर्मो को दूर करना कर्मो की निर्जरा कहलाता है। कर्मो की निर्जरा किए बिना आत्मा सिद्ध बुद्ध नही बन सकता। 

आज दिनांक 17/08/2024 को आस्था पूजा तपोत्सव के माध्यम से मासक्षमन के तपस्वियों का बरघोड़ा निकाला गया। श्रीमती पूजा धनराज जी लूनिया (30उपवास ) एवं सुश्री आस्था लूनिया (18 उपवास), श्री चमरू राम जी ध्रुव (30 उपवास) की तपस्या इन तपस्वियों के द्वारा किया गया। तपस्या के माध्यम से जिनशासन की जो प्रभावना तपस्वियों के द्वारा की जाती है उसके अनुमोदना स्वरूप ये वरघोड़ा निकाला जाता है। तपस्वियों के वरघोड़ा निकालने का एक उद्देश्य यह भी होता है की इनके माध्यम से दूसरो को भी प्रेरित किया जा सके। दूसरो को भी तप आदि से जोड़कर आत्मा के उत्थान की ओर आगे लाया जा सके।

Tags:

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)