किसी साधक के लिए एकांत और अंधकार दोनों घातक होता है-प.पू.विशुद्ध सागर जी म.सा.

धमतरिहा के गोठ
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संजय छाजेड

धमतरी।  परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि हमे हमेशा वर्तमान में जीना चाहिए। दुर्गुणों को निकाल कर सद्गुणों को ग्रहण करते हुए आत्मा को हमेशा संभव में रमण करना चाहिए। किसी साधक के लिए एकांत और अंधकार दोनों घातक होता है। हमे जिस वस्तु की आदत हो जाती है या जिसके बिना हम रह नहीं सकते उसे ही व्यसन की श्रेणी में रखा जाता है। मिथ्यात्व के पांच कारण होते है,जिसमें पहला कारण है प्रमाद अर्थात आलस्य । इसे दूर करने का पुरुषार्थ स्वयं को करना पड़ता है। हमारी आत्मा से मिथ्यात्व का पर्दा तभी हट सकता है जब हम आलस्य का त्याग करे। हमे प्रति दिन कुछ समय ऐसा व्यतीत करना चाहिए जिसमें मुझे कोई नहीं चाहिए और कुछ नहीं चाहिए क्योंकि यही चाह ही दुख का कारण है। हमे परमात्मा की भांति अपने मन को सदा जागृत रखने का प्रयास करना चाहिए। आज से यह सावन माह अर्थात श्रवण माह प्रारंभ हो रहा है। सभी धर्मो में इसे पवित्र माह माना गया है। यह श्रवण अर्थात सुनने का माह है । इस माह में अपने पापो के शमन को दामन करने का अवसर मिलता है।

       जैन परंपरा में इस माह में तप त्याग अधिक होता है। तप के माध्यम से आत्म के कषायो को दूर करना हैं जैसे छत मे जमी धूल या मैल पहली वर्षा के साथ धूल और मैल साफ हो जाता है वैसे ही आत्मा में लगे मैल को धोने के लिए जिनवाणी रूपी वर्षा की आवश्यकता होती है। जो अपने चेतन के प्रति जागरूक हो और जिन्हें अपने चैतन्य को जगाना हो वही जिनवाणी श्रवण करने आता है। इस कार्य के लिए विनय का होना अत्यंत आवश्यक है। विनय का पहला कार्य होता है जैसा कहा गया हो वैसा ही करना। जैसे गंदे कपड़े को साफ करने के लिए साबुन और पानी की जरूरत होती है  ठीक उसी प्रकार आत्मा से कषाय रूपी मैल को साफ करने के लिए तप रूपी साबुन और जिनवाणी रूपी पानी की जरूरत होती है। इस श्रवण माह में परमात्मवाणी का अधिक से अधिक श्रवण करना चाहिए। जो जानबूझ कर वरन करते है उसे जानवर कहते है। जानवर जब मिल जाए तब खाने लग जाता है, हम मानव है ,हमे निश्चित समय पर भोजन करना चाहिए। ये चातुर्मास आत्मा की सफाई का समय है। अगर हमे आगे बढऩा है तो इस चातुर्मास में कम से कम एक कदम आगे जरूर बढऩा है।

      श्रावक के छह सामान्य कर्तव्य में पहला कर्तव्य में पहला कर्तव्य परमात्म पूजा है। अपने कर्तव्य का पालन करने वाला ही पूज्यनीय बनता है। उपकारी के उपकार को उपकृत करने के लिए उपयोग करना है। परमात्म पूजा के लिए कभी भी मुहूर्त नहीं देखना चाहिए। हमे परमात्मा से मांगना चाहिए कि हे परमात्मा जो आपका भूतकाल था वो मेरा वर्तमान काल है। और जो आपका वर्तमान है वो मेरा भविष्य बन जाए। हे परमात्मा मुझे वह दृष्टि देना जिस दृष्टि से आप संसार को देखते है। अपने भावना की ज्योत को परमात्मा के लिए जलाना है ।अपने मन से कषायए व्यास और मिथ्यात्व को बाहर निकालना होगा तभी हृदय में परमात्मा का अंदर प्रवेश हो सकता है। परमात्म भक्ति स्वयं के परमात्मा बनने का सबसे सरल मार्ग है।



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