परमात्मा और गुरु की निंदा करने वाला कभी आगे नहीं बढ़ सकता-प.पू.विशुद्ध सागर जी म.सा.

धमतरिहा के गोठ
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संजय छाजेड

धमतरी।  जैन मंदिर इतवारी बाजार में चातुर्मास हेतु विराजित ओजस्वी वक्ता श्री विशुद्ध सागर जी महाराज  का प्रवचन जारी है जिसमें परम पूज्य विशुद्ध सागर जी म.सा. ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि जीवन रूपी बगिया में सदगुण फुल ऐसा रूपी ऐसा फुल खिलाना है जिसके सुगंध रूपी प्रभाव से सब प्रभावित होकर खींचे चले आए। अगर जीवन में परमात्मा का साथ हो तो कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। संसार में ऐसा कोई उम्र नहीं है जिसमें किसी की मृत्यु न हुई हो। इसलिए अपने जीवन के हरपल को एक अवसर मानकर उसका सदुपयोग करना चाहिए क्योंकि जीवन का के अंत क्षण आ जाए पता नहीं। ज्ञानी भगवंत कहते है जान और मृत्यु के बीच का सामान्य जीवन है। इस जीवन का हरपल एक स्वर्णिम अवसर है। इस जीवन में हमे जो समय

, समझ और शक्ति मिला है अगर इसका सदुपयोग नहीं करेंगे तो यह समाप्त हो जाएगा। हमारी चाह अर्थात हमारी इच्छा ही हमारे दुख का कारण है। हमारा प्रयास प्रतिदिन अपने विकारों को दूर करते हुए अपनी आत्मा के निकट आने के लिए होना चाहिए। क्योंकि प्रयास ही सफलता की सीढी है। प्रयास करते समय भले ही कुछ समय के लिए हम रुक जाए लेकिन सफलता मिलने तक हार नहीं मानना चाहिए। दूसरो को जागृत करते हुए स्वयं को भी जागृत रखना पड़ता है। हमेशा अपने बेस्ट को बैटर करने का अर्थात अच्छे को और अच्छा करने का प्रयास करना चाहिए। किसी भी स्थान पर किया गया पाप से तीर्थ स्थान में जाकर हम मुक्त हो सकते है लेकिन  तीर्थ स्थान में किए गए पाप  से कभी मुक्त नहीं हो सकते। उसे भोगना ही पड़ेगा। इस संसार में चारो ओर केवल पाप ही पाप है और इस पाप के ताप और संताप से बचने के लिए स्वाध्याय करना चाहिए। इसीलिए श्रावक के छह सामान्य कर्तव्य में तीसरा कर्तव्य स्वाध्याय बताया गया है । गुरु उस निशान की तरह होते है जो स्वयं एक स्थान में रहकर शिष्य रूपी राहगीर को सही राह दिखाते है। जो इंसान उबरने वाले का सहारा लेता है वो उबर जाता है और जो डूबने वाले का सहारा लेता वो डूब जाता है। उसी तरह हमे भी इस संसार सागर से उबरने के लिए परमात्मा या गुरु का सहारा लेना चाहिए। परमात्मा और गुरु की निंदा करने वाला कभी आगे नहीं बढ़ सकता। परमात्मा और गुरु के न होने पर स्वाध्याय हमे सत्य का ज्ञान कर सकता है। और इसी के माध्यम से परमात्मा तक हम पहुंच सकते है। आत्मा से परमात्मा बनने का मार्ग संसार के सभी धर्म शास्त्रों में बताया गया है। जब हम उसे श्रवण कर अपने जीवन में उतर लेंगे तो परमात्मा बनने की ओर आगे बढ़ पाएंगे। स्वयं को अच्छे से अच्छा बनाने के लिए स्वाध्याय आवश्यक है


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