संजय
छाजेड
धमतरी। जैन मंदिर इतवारी बाजार में चातुर्मास हेतु विराजित ओजस्वी वक्ता श्री विशुद्ध सागर जी महाराज का प्रवचन जारी है। परम पूज्य विशुद्ध सागर म सा ने अपने आज के प्रवचन में फरमाया कि जिस दिन हम अपनी आत्मा में डुबकी लगाएंगे उस दिन इस संसार से तीर जायेंगे। अपने मन को परमात्मा को याद करके आनंद से भरना है। सत्संग का उपयोग जानने और जीने में करना चाहिए। सत्संग के माध्यम से हम जान तो जान जाते लेकिन जीने के लिए नहीं करते। हम जानने का कार्य तो धरातल पर करते है लेकिन उसे जीन आसमान में चाहते है। मुक्ति प्राप्त करने के लिए पहले जानना फिर जांचना और उसके बाद उसे जीना अर्थात जीवन में उतारने आवश्यक है। जब ये प्रक्रिया अपनाएंगे तक मुक्ति संभव है। जब किसी धार्मिक कार्यों में हमारा मन नहीं लगता तो हम उस कार्य को बंद कर देते है लेकिन पाप के कार्यों को कभी बंद करने का प्रयास नहीं करते। मंजिल प्राप्त करने वाला कभी सीढियों की चिंता नहीं करता। आज हमे चिंतन करना है क्या मेरा परमात्मा के परिवार ने नंबर है। अगर नहीं है तो ये चिंतनीय है और नंबर है तो वंदनीय है।
हमे अपने जीवन से दोष दृष्टि को दूर करना है। तभी हम सुखी बन सकते है। हम दूसरो के दोष देखने के आदि है इसलिए हमेशा दुखी रहते है । नजरिया बदले बिना वास्किकता नजर नहीं आ सकता। अर्थात वास्तविकता को जानने और समझने के लिए अपने नजर की दोष दृष्टि अर्थात अपने अंदर के अज्ञान को दूर करना होगा। हमारा नजरिया हमारा क्रोध ही है। जीवन में पुण्य के उदय पर बड़ी से बड़ी गलती को संसार माफ कर देती है लेकिन पाप के उदय आने पर छोटी से छोटी गलती होने पर भी संसार सजा देती है ।आत्मा में लगे विषय और कषाय को दूर करके पहले आत्मा को शुद्ध करना होगा। तब आत्मा परमात्मा बन सकती है। ऐसा लगता है कि हमने दोष देखने की दृष्टि से दोस्ती कर ली है। ज्ञानी भगवंत कहते है कि यह संसार एक झूठ या स्वप्न के समान है। जैसे चेहरे पर लगा हुआ रंगीन चश्मा उतरने पर वस्तु की वास्तविकता का ज्ञान होता है। वैसे ही अपनी दोषदृष्टि को दूर करके हम वास्तविकता को समझ सकते है। हमेकैपन स्वादूष को देखकर उसे दूर करने का प्रयास करना है । लेकिन हम हमेशा दूसरो के दोष को देखते है। इसी लिए आत्मा का कल्याण नहीं हो रहा। जीवन के समीकरण का समाधान करने के लिए दोष दृष्टि रूपी कोष्ठक को पहले हाल करना होगा। पानी में डूबने से लकड़ी बचा सकती है पत्थर नहीं। दोष दृष्टि पत्थर के समान है।