परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पार्श्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज दिनांक 29 जुलाई 2025 को परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि हे जीव अपने जीवन के लिए जौहरी स्वयं को ही बनना है। और अपने जीवन की अमूल्यता को जानना और पहचानना है। क्या पता पुनः ये मौका कब मिलेगा। न जाने कब से नरक और तिर्यांच गति में भटकते रहे। उसके बाद देव गति में जाकर भी तरसते रहे। बड़ी कठिनाई से दुर्लभ मानव जीवन मिला है। अब इस मानव जीवन को सफल बनाने का प्रयास करना है। हमें आत्मदाता और आत्मज्ञाता बनना है। स्वयं में विधाता को देखकर विधाता बनने का प्रयास करना है। साथ ही जिनशासन का खजाना मिला है और साधु संतों का समागम मिला है। ऐसा दुर्लभ अवसर हमे प्राप्त हुआ है। अब जागना है अपने जीवन में इस अवसर का लाभ उठाना है। हम किसी के नहीं है और कोई हमारा नहीं है। इस संसार में कोई हमारा नहीं है। जीवन का सफर अकेले ही पार करना है । जैसा कर्म करेंगे वैसा ही फल मिलेगा। इसलिए हे चेतन अपने जीवन को समता भाव के साथ गुजारने का प्रयास करना है । भव भव में हम दूसरों से बहुत परिचय कर लिए। अब मानव जीवन ऐसा मिला है जिसमें स्वयं से अर्थात अपनी आत्मा से परिचय करना है। क्योंकि स्वयं से परिचय होने पर ही स्वयं का अर्थात आत्मा का विकास किया जा सकता है।
आज जब धर्म के 22वें तीर्थंकर परमात्मा नेमीनाथ भगवान का जन्मकल्याणक महोत्सव है। ज्ञानी कहते है जीवन की शुरुआत जन्म से नहीं होता बल्कि जब से आत्मा है तब से जन्म हो चुका है। किंतु हम जिस पल आत्मा का शरीर से संयोग होता है उसे जन्म कहते है। जिस शरीर का संयोग हुआ था उसका वियोग हो जाना ही मृत्यु है। जबकि परमात्मा जन्म और मृत्यु को केवल एक व्यवहार मानते है। अर्थात उनका मानना है कि शरीर की मृत्यु होती है आत्मा तो अजर अमर है अर्थात शाश्वत है। हमें अपने जन्मदिन का इंतजार हमेशा रहता है। किंतु जब हमारे जन्मदिन का इंतजार दूसरों को हो तो समझना मानव जीवन सफल हो गया। इसीलिए तीर्थंकर परमात्मा के जन्मदिन को जन्मकल्याणक के रूप में मनाते है क्योंकि उनका जन्म ही दूसरों के कल्याण के लिए हुआ था। परमात्मा स्वयं का कल्याण करने के साथ साथ प्राणी मात्र का कल्याण करने में सहायक होते है। परमात्मा का जन्म ही सुख प्राप्ति का अर्थात दुख से मुक्ति का मार्ग है। परमात्मा का जन्म चारगति के जीवो के उद्धार के लिए होता है। परमात्मा का जन्म स्वयं से युद्ध के लिए होता है। परमात्मा अपने जीवन में अपने मोहकर्म से युद्ध करते है। परमात्मा स्वयं से युद्ध मोह के विरुद्ध करते है।
परमात्मा नेमीनाथ भगवान का जन्म आज के दिन अर्थात सावन सुदी पांचम के दिन सौरीपुर नगर में अश्वसेन राजा की भार्या शिवादेवी की रत्नकुक्षी से हुआ था। ज्ञानी कहते है आत्मा की दृष्टि से जन्म लेना पीड़ा दायक है। क्योंकि आत्मा का स्वभाव सिद्ध बुद्ध मुक्त होना अर्थात अनंतकाल के लिए शरीर से छुटकारा पाना है। एक बार जन्म लेना कई जन्म का भव भ्रमण बढ़ाना है। किंतु परमात्मा जन्म लेकर अपने अनंतकाल के भवभ्रमण को दूर करते है। इसके बाद अब कभी परमात्मा का इस संसार में जन्म नहीं होगा। अगर जन्म मरण से मुक्ति के लिए जन्म हुआ है हम ऐसा मानते है तो आने वाले समय से भवभ्रमण को कम कर सकते है। मुक्ति का भाव रखने वाला मानव जीवन पाकर मुक्ति पा लेता है किंतु मनुष्य भव चाहने वाला मुक्ति पा ले आवश्यक नहीं है हो सकता उसके कर्मों के कारण उसका भव भ्रमण बढ़ जाए। ज्ञानियों का कहना है संयोग की भावना आत्मा के दुख का कारण है जबकि वियोग की भावना सुख का कारण है। आत्मा का शरीर से संयोग होने पर कर्मों का आगमन होता है और ये भवभ्रमण बढ़ता है अर्थात ये आत्मा के लिए दुख का कारण बन जाता है।
हम परमात्मा का जन्मकल्याणक महोत्सव तीन प्रकार से मना सकते है।
उत्कृष्ट - प्रभु ने जैसा जन्मकल्याणक मनाया वैसा ही हम भी मना सकते है। परमात्मा का जन्म एक सम्यक लक्ष्य के साथ होता है। जीवन भर उसी लक्ष्य के अनुसार पुरुषार्थ करते है और अपने लक्ष्य को प्राप्त करते है। जीवन का कोई लक्ष्य न हो और जीवन केवल व्यतीत हो रहा हो तो उसका केवल जन्मदिन मनाते है। किंतु जब जीवन का जन्म एक सम्यक लक्ष्य के साथ हो और उसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ चल रहा हो तो ऐसे आत्मा का अर्थात जीव का जन्मकल्याणक दुनिया मनाती है।
मध्यम - देवतागण जिस तरह अहोभाव से प्रभु का जन्ममहोत्सव मनाते है। उसी तरह हम भी परमात्मा का जन्मकल्याणक महोत्सव मना सकते है।
सामान्य - परमात्मा के जन्मकल्याणक के दिन अर्थात केवल एक दिन तप त्याग आराधना साधना करके परमात्मा का जन्मकल्याणक महोत्सव मनाना।