संजय छाजेड
धमतरी। उपाध्याय प्रवर अध्यात्म योगी परम पूज्य महेंद्र सागर जी महाराज साहेब युवा मनीषी परम पूज्य मनीष सागर जी महाराज साहेब के शिष्य रत्न युवा संत परम पूज्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज साहेब ने आज के प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि अपने मन को भोग के रोग से और पाप के संताप को हटा लें तो जीवन का उद्धार हो सकता है। ये दुनिया एक भ्रम है। जिसको मैं परिवार कहता हू वो संसार का केवल एक व्यवहार हैए जिसको धनवान कहता हू वो माया का जंजाल है। इसलिए मोह . माया का चक्कर हटाकर निजचरण अर्थात स्वयं के अंदर रहे हुए परमात्मा को स्मरण करना है। ज्ञानी कहते हैं राग की आग में और द्वेष के बीच में अगर फंस गया तो संभलना मुश्किल है। मेरी चांद जैसी आत्मा में मानो संसार के मायाजाल का ग्रहण लग गया है। अब इस ग्रहण को दूर करने का प्रयास करना है। इस संसार में जब से आए हैं संसार के हर वस्तु के लिए मेरी.मेरी ही करते है । पर इतना तो सोच इस संसार में क्या तेरा है । तू संसार की वस्तुओं को ज्ञान की कसौटी पर परख कर देख। समझ आ जायेगा कुछ भी तेरा नहीं है। हे मानव तू अनादि से इस संसार का चक्कर लगा रहा है। कभी देव गति तो कभी नरक और तिर्यंच गति पाता रहा है। और ये सब इस कर्म के चक्कर में संसार का चक्कर लगाते रहा है। अब कुछ ऐसा कर की कर्म को चक्कर लगाना पड़े। जिस दिन ऐसा कर पाया उस दिन इस संसार से मुक्त हो जायेगा। कर्म शुभ हो या अशुभ ए दोनो इस संसार के भ्रमण का कारण है। इसलिए हे चेतन तू पहले अपनी आत्मा में आने वाले कर्मों को संवर के माध्यम से रोक ले और जो कर्म पहले से आत्मा में लगे हुए हैं उन्हें समता से भोग कर समाप्त कर ले। तभी आत्मा कर्म से मुक्त होकर सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो सकता है। ज्ञानी कहते हैं आत्मा तो गुणों की खान है , अगर आत्मा में सम्यक ज्ञान दर्शन और चारित्र का प्रकाश आ जाए तो आत्मा समकीत को प्राप्त कर सकता है, जिससे आत्मा का संसार भ्रमण संक्षिप्त हो जायेगा।
ज्ञानी कहते हैं आत्मा की दृष्टि से सबमें समानता है किंतु आत्मा संसार में आकर अपने कर्म के कारण विषमता को प्राप्त कर लेती है कोई रागी है तो कोई वैरागी,कोई बुद्धू है तो कोई बुद्धिमान,कोई धनवान है तो कोई निर्धन,कोई बलवान है तो कोई कमजोर,कोई भोगी है तो कोई योगी और इस विषमता का कारण हमारे द्वारा किए जाने वाले कर्म ही है। ज्ञानी भगवंत कहते हैं इस शरीर में कर्म उस दरवाजे के समान है जिसे बंद न करने पर बाहर का धूल घर में प्रवेश कर ही जाता है। जिस प्रकार सरोवर में आने वाले जल के रास्ते को जब तक बंद न किया जाए उसमें जल आते ही रहता है उसी प्रकार आश्रव ही हमारी आत्मा में कर्मो के आने का द्वार है। इस आश्रव के द्वार को बंद करने का माध्यम है संवर। संवर का अर्थ है रोकना। अर्थात आत्मा में आने वाले शुभ.अशुभ कर्मों को रोकना। ज्ञानी कहते हैं इच्छा पूर्वक पाप कर्मों का त्याग करना चाहिए। विरती धर्म का पालन जीवन में करना चाहिए। मानव जीवन भले ही मलमूत्र की खान हैए भले ही नाशवान है लेकिन फिर भी मानव जीवन मोक्ष का साधन है। मानव जीवन साधना का सुअवसर है। इस जीवन में प्राप्त साधनों से साधना करके साध्य बनने का पुरुषार्थ करना है। ज्ञानी मिथ्यात्वी को पहचानने का लक्षण बताते हुए कहते हैं कि वह अपने प्रभाव को बढ़ाने का काम करता है किंतु स्वभाव को बदलने का नहीं। वह जगत की मानता है पर जगतपति अर्थात परमात्मा की नहीं। वह धर्म दिखावे के लिए करता है आत्म.विकास के लिए नहीं। मिथ्यात्व में ममत्व मिला हुआ होता है जिसके कारण हम मिथ्यात्व को छोड़ नही पाते हैं। मिथ्यात्व के साथ जीवन जीने वाला अपने संसार भ्रमण को बढ़ाने का ही काम करता है। पापों में जीवन जीना अविरती और पापों से स्वयं को अलग करना विरती कहलाता है। किसी व्यक्ति को बदलना हो तो उसके विचार को बदलने का प्रयास करना चाहिए। धीरे धीरे आचार अर्थात आचरण में बदलाव अपने आप आ जाता है। हम गलत आचरण का विरोध कर पाए या ना कर पाए किंतु सही आचरण का समर्थन जरूर करना चाहिए। हमे जीवन में इतना प्रयास जरूर करना है कि हम सच्चे भले ही ना बन पाए किंतु कम से कम बुरे तो ना बने।
कल 29 सितंबर रविवार को प्रात: 08:45 बजे से श्री गौतम स्वामी महापूजन होगा। 30 सितंबर सोमवार को प्रात: 08:36 बजे से श्री पाश्र्व नाकोड़ा भैरव महापूजन होगा। उपरोक्त दोनों कार्यक्रम में विधिकारक के रूप में अमित मेहता आकोदिया उपस्थित रहेंगे। दोनो कार्यक्रम श्री पाश्र्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार में परम पूज्य युवा संत श्री विशुद्ध सागर जी महाराज साहेब आदि ठाणा 3 की निश्रा में संपन्न होगा। उपरोक्त दोनों महापूजन के लाभार्थी परिवार नेमीचंद अमरचंद चोपड़ा परिवार है।