संजय छाजेड़
परम पूज्य उपाध्याय प्रवर अध्यात्मयोगी महेंद्र सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य उपाध्याय प्रवर युवामनीषी स्वाध्याय प्रेमी मनीष सागर जी महाराज साहेब के सुशिष्य परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब परम पूज्य योगवर्धन जी महाराज साहेब श्री पार्श्वनाथ जिनालय इतवारी बाजार धमतरी में विराजमान है। आज दिनांक 26 अगस्त 2025 को परम पूज्य प्रशम सागर जी महाराज साहेब ने प्रवचन के माध्यम से फरमाया कि परमात्मा अपने लिए स्वयं नियम बनाते है और पालन भी करते है। परमात्मा स्वयं गुरु भी होते है और स्वयं शिष्य भी होते है। परमात्मा नेतृत्वकर्ता है। और जो जीव परमात्मा के नेतृत्व को स्वीकार कर लेता है उसके जीवन का उद्धार निश्चित होता है। भगवान महावीर 30 वर्ष की आयु में संयम जीवन स्वीकार कर लेते है। उसके बाद साढ़े बारह वर्ष छदमस्त अर्थात साधना में रहते है। इस काल में साधना करते हुए अपने कर्मों को उदय में लाकर उसका उपशम करते है। इस छदमस्त काल में परमात्मा को अनेक उपसर्ग सहन करना पड़ता है। परमात्मा के जीवन में आने वाले उपसर्ग को अपने अवधिज्ञान से देखकर इंद्र परमात्मा से निवेदन करते है कि हे भगवान आपकी साधना काल बहुत कठिन होगी। इसलिए आप मुझे आज्ञा दे की आपके छदमस्त काल तक आपके साथ रहूं और आने वाले उपसर्गों का निवारण कर सकूं। यह सुनकर भगवान कहते है हे इंद्र आज तक ऐसा न हुआ है न होगा कि कोई देव आदि की सहायता लेकर सिद्ध हुआ हो। सेवा और साधना एक साथ नहीं चल सकता। मेरे कर्मों का उदय होगा तो मुझे ही भोगना भी पड़ेगा। 24 तीर्थंकरों में भगवान महावीर सबसे कम आयु के तीर्थंकर हुए लेकिन सबसे अधिक उपसर्ग भी आपने ही सहन किया। भगवान महावीर के जीवन का एक एक प्रसंग श्रवणीय और वंदनीय और पूज्यनीय है। परमात्मा अपने साधना काल में अर्थात छदमस्त काल में शरीर की सुश्रुषा का त्याग करते है। हम संसार में किसी को भी साधन, सुविधा और संपत्ति से जानने पहचानने का प्रयास करते है । जबकि महापुरुष अपने व्यक्तित्व अर्थात आचरण से और साधना से पहचाने जाते है। एक बार परमात्मा विचरण करते करते एक जंगल केप एस पहुंचते है। उस जंगल में एक अत्यंत जहरीला दृष्टिविष सर्प रहता था जिसका नाम चंडकौशिक था। वह परमात्मा को अपने निकट आते देखकर क्रोधित हो जाता है। फिर परमात्मा जब चंडकौशिक के निकट आते है वह परमात्मा के पैरों को डस लेता है। यहां पर परमात्मा के पैरों से खून के स्थान पर दूध की धारा बहने लगती है। ज्ञानी कहते है संसार के सभी जीवो के प्रति परमात्मा के हृदय में करुणा का भाव होता है। संसार के सभी जीव के लिए परमात्मा के हृदय में मां जैसी ममता होती है। इसलिए परमात्मा के पैरों से खून के स्थान पर दूध बहने लगता है। चंडकौशिक के डसने पर परमात्मा महावीर उसे प्रतिबोध देते हुए कहते है बुझ्झ बुझ्झ चंडकौशिक । परमात्मा का यह वचन सुनकर वह चंडकौशिक सर्प जागृत हो जाता है। और विचार करता है। की मैने किस तरह कर्म करके अपने भव को बिगाड़ लिया। यह विचार करते करते वह सर्प शांत हो जाता है। और यही पर चंडकौशिक सर्प को सम्यकत्व प्राप्त हो जाता है। यही पर चंडकौशिक परमात्मा से आत्मकल्याण हेतु नियम ले लेता है। 15 दिन में सर्प का काल धर्म हुआ। वह सर्प यहां से आठवें देवलोक में गया। एक बार भगवान को शीतोपसर्ग होता है। परमात्मा इसे समता भाव से सहन कर लेते है। तब परमात्मा को लोकावधि ज्ञान प्राप्त होता है। एक ही रात्रि में संगमदेव भगवान महावीर को 20 उपसर्ग देते है। लेकिन परमात्मा जरा भी चलायमान नहीं होते। अंत में वह संगमदेव हार मन लेते है। और परमात्मा को वंदन करके पंख लौट जाता है। जब परमात्मा को संगमदेव उपसर्ग देते है तब परमात्मा शांत रहते है। लेकिन जब जब संगम देव पुनः लौटने लगते है तब परमात्मा की आंखों में इस विचार से आंसू आ जाते है। की मेरे निमित्त इस संगम ने जो कर्मों का बंध किया है उससे इसे कैसे छुटकारा मिलेगा। आगे विहार करते करते परमात्मा अपने जीवन में राजा की पुत्री हो, पैरों में लोहे की बेड़ी हो, आंखों में आंसू हो, 3 दिन की भूखी हो। इस तरह कुल 13 विलक्षण अभिग्रह लेते है। किंतु परमात्मा का अभिग्रह पूर्ण नहीं होता है इस कारण परमात्मा आहार नहीं लेते है। परमात्मा विचरण करते करते आगे बढ़ते रहते है। दूसरी ओर चंदनबाला जो राजपुत्री थी। शत्रु देश का सैनिक उसे उठाकर ले गया था और एक सेठ को बेच देता है। उस सेठ की सेठानी यह समझ नहीं पाती है। और सेठ के व्यापार के लिए बाहर जाने पर चंदनबाला के हाथ पैरों में बेड़ी डालकर काल कोठरी में डाल देती है। 3 दिन बाद जब सेठ लौटकर वापस आता है । उस चंदन बाला के बारे में पूछते है। पूरी जानकारी होने पर उसे काल कोठरी से निकालते है। और उसे बैठाकर खाने के लिए उड़द के बाकुले देते है । इस समय चंदनबाला विचार करती है। ऐसे तो मेरा तीन दिन भूखे ही निकल गया । अगर कोई अतिथि आ जाए तो उसे कुछ देकर आकर करूं। यह विचार करते हुए वह घर के के बाहर चौखट पर आ जाती है। दूसरी ओर से भगवान महावीर आहार के लिए उधर से निकलते है। यह देखकर चंदनबाला आहार के लिए निवेदन करती है। परमात्मा देखते है कि 13 में से उनके 12 अभिग्रह तो पूर्ण हो रहा है। किंतु आंखों में आंसू नहीं है। यह देखकर परमात्मा पुनः लौट जाते है। परमात्मा को लौटते हुए देखकर चंदनबाला की आंखों में आंसू आ जाते है। तब परमात्मा पुनः लौटकर आते है और चंदनबाला के हाथ से आहार ले लेते है। यहां पर परमात्मा के 5 माह 25 दिन के उपवास का पारणा होता है। परमात्मा को उत्कृष्ट उपसर्ग के रूप में कानों में खिले ठोकने का उपसर्ग हुआ। फिर खरक वैद्य आकर परमात्मा की सेवा करता है। वह वैद्य मरकर पांचवें देवलोक में जाता है। भगवान महावीर ने साढ़े बारह वर्ष साधनाकाल अर्थात छदमस्त अवस्था में केवल 365 दिन आहार लिया। साथ ही लगातार 2 दिन आहार नहीं लिया। इस काल में केवल 2 घड़ी अर्थात 48 मिनट परमात्मा को नींद आई। ऐसे परमात्मा महावीर को ऋजूबालिका नदी के तट पर गोदुग्ध आसान में केवलज्ञान प्राप्त हुआ। जो आत्मा छपक श्रेणी की ओर आगे बढ़ता है उनको ही शुक्लज्ञान प्राप्त होता है। केवलज्ञान प्राप्त होने के बाद शमवशरण की रचना देवो द्वारा की जाती है। इस शमवशरण में बैठकर परमात्मा जीवमात्र के कल्याण के लिए देशना देते है। परमात्मा अपने अंतिम समय में पावापुरी में हस्तिपाल राजा की जीर्णशाला में पधारते है। यहां पर कार्तिक वदी अमावस्या के दिन निर्वाण हो जाता है। अब परमात्मा कभी भी इस संसार में पुनः लौटकर नहीं आयेंगे
तपस्या के क्रम में
1. मानसी बरडिया सुपुत्री अभय जी बरडिया 15 उपवास
2. श्रुति बरडिया सुपुत्री संजय जी बरडिया 09 उपवास
3. अभिषेक जी सुपुत्र निर्मल जी श्रीश्री माल 08 उपवास
4. मधु जी धर्मपत्नी आशीष जी डागा 08 उपवास
5. श्रीमती राखी जी धर्मपत्नी स्व. संजय जी संकलेचा 07 उपवास
6. श्रीमती सुशीला जी धर्मपत्नी धनपत जी बरडिया 07 उपवास
7. स्नेहा जी सुपुत्री निर्मल जी श्री श्री माल 07 उपवास
8. श्रीमती रेखा जी धर्मपत्नी राजेंद्र जी गोलछा 07 उपवास
9. श्रीमती पूजा अंकित जी छाजेड़ 09 उपवास
10. शिशिर जी सेठिया सुपुत्र महेश जी सेठिया 07 उपवास
11. दिव्य जी सुपुत्र गौरेश जी शाह 06 उपवास
12. चेतन जी सुपुत्र महेश जी बरडिया 10 उपवास