मुख्यमंत्री मेधावी छात्र.छात्रा शिक्षा प्रोत्साहन योजना से पंकज के जीवन में आया बदलाव

धमतरिहा के गोठ
0

 

संजय छाजेड

धमतरी। एक छोटे से गांव से निकल कर इंजीनियरिंग की पढाई करना और वहां से आईआईटी धनबाद का सफर और फिर टाटा स्टील जैसे बउी कंपनी में मैनेजर का प्रतिष्ठापूर्ण पद प्राप्त करना किसी भी श्रमिक परिवार के बच्चे के लिए एक सपने जैसा है। इस सपने को हकीकत में बदलने का काम एक श्रमिक परिवार के होनहार बच्चे ने कर दिखाया है। मुख्यमंत्री  विष्णु देव साय ने विश्वकर्मा जयंती के अवसर पर राज्य स्तरीय श्रमिक सम्मेलन में ग्राम दर्री के श्रमिक परिवार के इस होनहार युवा पंकज साहू को इस कामयाबी के लिए सम्मानित किया और उज्ज्वल भविष्य के लिए शुभकामनाएं दी। वर्तमान में पंकज साहू ओडिशा के जैपुर जिले के कलियापानी स्थित टाटा स्टील कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत है। पंकज साहू इस सम्मान के लिए मुख्यमंत्री विष्णु देव साय का हृदय से आभार मानते हैं।

                पंकज साहू की कहानी संघर्षए मेहनतए इच्छाशक्ति और सरकारी योजनाओं से मिले सहयोग का एक जीता जागता उदाहरण है। जिले के छोटे से गाँव दर्री निवासी पंकज एक साधारण परिवार से ताल्लुक रखते हैं। पंकज साहू बताते हैं कि उनके पिता जयलाल साहू धमतरी के एक निजी दुकान में श्रमिक के रूप में कार्यरत थे और उनकी माता ज्ञानबती साहू रेजा मजदूर के रूप में काम करती थी। वे छत्तीसगढ शासन के श्रम विभाग में निर्माणी श्रमिक के तौर पर पंजीकृत है। पंकज की प्रारंभिक पढाई गाँव में ही हुई थी। वे बताते है कि उन्हें बचपन से ही गणित और विज्ञान जैसे विषयों में विशेष रूचि थी, उनके पिता भी गणित में स्नातक हैं। आर्थिक परिस्थिति के चलते उन्हें श्रमिक के रूप में कार्य करना पढ रहा था। पंकज साहू ने स्कूल के दिनों में ही तय कर लिया था कि इंजीनियर बनकर परिवार की परिस्थिति को बदलेंगेए लेकिन जब इंजीनियरिंग करने की बारी आई, तो परिवार के सामने आर्थिक चुनौतियाँ खडी हो गईं। इंजीनियरिंग की पढाई का खर्च वहन करना उनके परिवार के लिए नामुमकिन था।

             पंकज साहू और उनके परिवार के लिए छह हजार की सीमित आय में शिक्षा की ऊँचाइयों को छूना आसान नहीं था। पंकज साहू भावुक होकर कहते हैं कि उन्होंने अपने स्कूल शिक्षा के दौरान ही स्वयं सेवी संस्था के साथ जुडकर काम करना शुरू कर दिया था। गर्मियों की छुट्टियों में आस पडोस के बच्चों को ट्यूशन दिया करते थे। उससे मिली मेहताना से अपने पढाई का खर्चा उठाते थे। उन्होंने बताया कि बाहरवीं पास होने के बाद पैसे की कमी होने के कारण वे पीईटी का फार्म तक नहीं भर पाये थे। ऐसे में उन्हें बीएससी में एडमिशन लेना पढा। लेकिन पंकज साहू की इंजीनियरिंग करने की चाहत तब भी कायम रही। उन्होंने कॉलेज की पढाई के साथ धमतरी में निजी दुकानों में काम करना शुरू कियाए साथ ही प्राइवेट कोचिंग और एनजीओ के साथ काम जारी रखा। इस तरह उन्होंने पैसे जोडकर पीईटी परीक्षा में पास होकर शासकीय इंजीनियरिंग कॉलेज जगदलपुर में माईनिंग डिपार्टमेंट में बीई में दाखिला लिया। कॉलेज की पढाई के दौरान ही एनजीओ में वॉलंटियर के रूप में कार्य करते रहेए जिससे वे अपने कॉलेज और हॉस्टल का व्यय वहन कर सका।


              इंजीनियरिंग के बाद भी पंकज की राह आसान नहीं थी। उन्होंने एम टेक करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने गेट की परीक्षा पास की, लेकिन मुश्किलें थमी नहीं थीए एम टेक की पढाई का खर्च सालाना लगभग एक लाख रुपये था, जो उनके परिवार के लिए एक भारी बोझ था। इतनी सीमित आय में उच्च शिक्षा ग्रहण करना मुश्किल था, लेकिन पंकज के जीवन में श्रम विभाग द्वारा संचालित मेधावी छात्र.छात्रा शिक्षा प्रोत्साहन योजना मील का पत्थर साबित हुई। उन्हें गांव के कुछ जागरूक जनप्रतिनिधियों से योजना के बारे में पता चला, जिससे उनके सपनों को नई उडान मिली। योजना के तहत पंकज की एमटेक की शिक्षा का पूरा खर्च छत्तीसगढ सरकार द्वारा वहन किया गया। इस योजना का लाभ लेते हुए उन्होंने आईआईटी धनबाद से एमटेक की डिग्री प्राप्त की और अपनी कडी मेहनत और लगन के कारण गोल्ड मेडल हासिल किया। धनबाद में अपनी एमटेक की पढाई पूरी करने के बाद पंकज को वेदांता रिसोर्स में प्लेसमेंट मिला और जल्द ही उन्हें टाटा स्टील कंपनी में मैनेजर के पद पर नियुक्ति मिली। आज पंकज सालाना 18 लाख रुपये के पैकेज पर कार्यरत हैं और उनका जीवन पूरी तरह से बदल चुका है। पंकज ने भावुक होते हुए कहते हैं कि अगर उन्हें मुख्यमंत्री मेधावी छात्र.छात्रा शिक्षा प्रोत्साहन योजना और उनके माता.पिता का सहारा न मिलताए तो शायद उनके लिए इतनी बडी कंपनी में मैनेजर की पोस्ट तक पहुँचना एक सपना ही रह जाता। उन्होंने छत्तीसगढ सरकार का आभार व्यक्त कियाए जिसके चलते उनके जैसे कई गरीब बच्चों को शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढने का अवसर मिल रहा है। पंकज की कहानी उन लाखों बच्चों के लिए प्रेरणास्रोत है जो आर्थिक तंगी के कारण अपने सपनों को छोडने पर मजबूर हो जाते हैं।

Tags:

एक टिप्पणी भेजें

0टिप्पणियाँ

एक टिप्पणी भेजें (0)