संजय जैन
धमतरी | आज गोंडी भाषा उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र सहित कई प्रदेशों में बोली जाती है। अलग-अलग राज्यों में थोड़ा-थोड़ा भिन्नता लिए हुए गोंडी भाषा प्रचलन में है। उसका मूल कारण है स्थानीय बोली भाषा का प्रभाव जैसे उड़ीसा में उड़िया और गोंडी मिश्रण है, आंध्रप्रदेश से लगे हुए बस्तर के क्षेत्र में तमिल गोंडी मिश्रण है जिसे दोरली बोली भी कहते हैं। जिसके कारण कोया गोंडी से पृथक अलग से दोरली जनजाति भी दक्षिण बस्तर में अलग से है। महाराष्ट्र में मराठी गोंडी मिश्रण है, छत्तीसगढ़ के प्लेन एरिया से लगे हुए क्षेत्र में गोंडी छत्तीसगढ़ी मिश्रण होकर हल्बी, भतरी के रूप में बोली जाती है। मध्यप्रदेश में गोंडी हिंदी मिश्रण होकर पारसी बोली बन गया। कर्नाटक में कन्नड गोंडी मिश्रण बोली जाती है। ऐसे ही भाषा में थोड़ा थोड़ा अंतर होने के कारण कोया गोंडी से मिलता जुलता बहुत सारे जातियां आज की स्थिति में है। जबकि वास्तव में इन सबका मूल गोंडी ही है। इसलिए आज की स्थिति में अति प्राचीन गोंडी भाषा को अक्षुण्ण बनाए रखने हेतु गोंडी भाषा का मानकीकरण अति–आवश्यक है। सुदूर वनों में रहने वाले सभी वर्गों के लोगों द्वारा अलिखित रूप में मौजूद गोंडी भाषा को व्यापक पैमाने पर भाषा के रूप में व्यवहारिक जीवन में उपयोग करने से इसकी महत्ता का अंदाजा लगाया जा सकता है। देश में असमिया, उड़िया, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, गुजराती, डोंगरी, तमिल, तेलुगू,नेपाली, पंजाबी, बांग्ला, बोड़ो, मणिपुरी, मराठी ,मलयालम, मैथिली, संथाली, संस्कृत, सिंधी, हिंदी को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित किया गया है। इस सूची में बहुत सारे ऐसी भाषा है जिनके बोलने वाले गोंडी भाषा बोलने वाले से बहुत ही कम है। गोंडवाना गोंड महासभा द्वारा लगातार धरना प्रदर्शन ज्ञापन के माध्यम से ध्यान आकृष्ट कराने के बावजूद भी अति प्राचीन भाषा गोंडी को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने हेतु नजरअंदाज किया जाना लाखों-करोड़ों गोंडी भाषा बोलने वालों के साथ सरासर नाइंसाफी है। आज जब आदिवासी क्षेत्र में चौतरफा सांस्कृतिक, भाषाई आक्रमण हो रहा है। ऐसी स्थिति में गोंडी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित करने से समृद्ध गोंडी भाषा का विकास संभव है। गोंडी भाषा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर स्थानीय लोगों के भावनाओं के अनुरूप शिक्षा प्रदान किया जा सकता है। गोंडी भाषा के जानकार अधिकारी कर्मचारियों की नियुक्ति आदिवासी क्षेत्रों में किए जाने से बेहतर संवाद स्थापित होगा जिससे विकास में गति आएगी। गोंडवाना गोंड महासभा के राष्ट्रीय सचिव, अनुसूचित जनजाति शासकीय सेवक विकास संघ छत्तीसगढ़ के प्रदेश अध्यक्ष आर.एन. ध्रुव द्वारा समाज के बुद्धिजीवियों से आह्वान करते हुए कहा गया है कि गोंडी भाषा के संरक्षण, संवर्धन एवं विकास हेतु क्षेत्रीयता, पार्टी वाद एवं व्यक्तिगत स्वार्थ को भुलाकर एकजुटता से आगे आए।