संजय जैन
धमतरी 2 जून। प्रदेश में कांग्रेस की सरकार स्थापित है और शहर की जनता ने नगर निगम को भी नई शहरी सरकार की जिम्मेदारी सौंपी है। समय-समय पर यह अमला संदेह के दायरे में आया है, चाहे वह निर्माण कार्यों का टेंडर हो, रिक्शा खरीदी का मामला हो, या फिर फिनाईल सप्लाई का मामला हो, उसमें काफी हद तक निगम की छवि खराब हुई है। और तो और वर्तमान स्थिति में निगम में कार्यरत कर्मचारियों को विगत तीन माह से उनका वेतन नहीं मिल रहा है जिसे लेकर विपक्ष के लोगों ने समय समय पर ऐसी बातों को लेकर धरना प्रदर्शन, शिकायतें तक की है। लेकिन निगम की कार्यशैली में बदलाव नहीं आया। अलबत्ता शहर में चल रहे निर्माण कार्यों में भी इसकी कोई रूचि नहीं रहती। इसी वजह से निर्माण स्थल पर यहां पदस्थ इंजीनियर कार्यालय की कुर्सी तोड़ते हुए नजर आते हैं। अनेक लोग तो कुर्सी छोडक़र अपने घरों में आराम करते रहते हैं जिसे लेकर शहर के जरूरतमंद लोग इधर उधर भटकते फिरते हैं।
नगर पालिका परिषद का उन्नयन नगर निगम के रूप तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह द्वारा किया गया था। इस हेतु नये भवन का उद्घाटन भी उनके द्वारा किया गया था। शहरवासियों को ऐसी आशा थी कि निगम बन जाने के बाद आम लोगों की मूलभूत सुविधाएं त्वरित गति से निराकृत होंगी। लेकिन ऐसा अब तक नहीं हुआ। निगम के राजस्व विभाग कार्यालय में तो आधार कार्ड के लिये महिला, पुरूष एक साथ रेलमपेल मचाये रहते हैं। इसके बाद भी अनेक ऐसी महिलाएं हैं जिनका काम नहीं होता और वो मायूस होकर लौट जाती हैं। निगम कार्यालय जाने के पूर्व टेलीफोन टॉवर के पास बड़े-बड़े गड्ढे सडक़ में हो चुके हैं जिसे पाटने की भी फुर्सत निगम के कर्मचारियों को नहीं है। यही नहीं मुख्य निगम कार्यालय के ऊपरी भाग के दरवाजे पूरी तरह सड़-गल गये हैं, उसे देखने की भी फुर्सत वहां पदस्थ कर्मचारियों को नहीं है। दावा किया जाता है कि राज्य सरकार ने शहर विकास के लिये करोड़ों रूपये की सौगात दी है। लेकिन जब इतनी बड़ी राशि की घोषणा हो चुकी है तो ऐसी स्थिति में निगम कर्मियों को वेतन क्यों नहीं मिल रहा है? सड़े-गले दरवाजों को क्यों नहीं बदला जा रहा है? निगम पहुंच मार्ग में बड़े-बड़े गड्ढे बन चुके हैं, उन्हें क्यों सुधार नहीं किया जा रहा है। निगम क्षेत्र में ऐसी खामियों को दूर करने के लिये किसी के पास समय नहीं है। लेकिन निर्माण कार्यों को लेकर यहां आपाधापी मचे रहती है। किसका बिल पास करना है, किसका नहीं करना है, यह सब तय किया जाता है।
पिछले दिनों प्रदेश के मुख्यमंत्री भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के तहत भटगांव आये थे, जहां से उन्होंने नगर निगम अंतर्गत शहर के विकास के लिये करोड़ों रूपये की घोषणा की है। इससे पूर्व भी निगम कार्यालय में इस बात की भी चर्चा थी कि नगरीय मंत्री ने करोड़ों रूपये की सौगात निगम को प्रदान की है। लेकिन ऐसी राशि आने के बाद भी छोटी-छोटी समस्याओं का निदान नहीं होना शहर में चर्चा का विषय बना हुआ है जिसे लेकर विपक्षी पार्षदों द्वारा मामला उठाया जाता है, धरना प्रदर्शन किया जाता है। इसके बाद भी निगम के कार्य में सुधार नहीं आया है। अनेक ऐसे जरूरतमंद लोग हैं जो अधिकारियों के न रहने की वजह से वापस आ जाते हैं। जिन्होंने बताया कि सुबह के समय जाने पर यह पता लगता है कि अधिकारी दौरे पर हैं, 3 बजे के बाद यहां कोई भी अधिकारी उपलब्ध नहीं रहता। यह लापरवाही से आमजन काफी परेशान हैं। निगम क्षेत्र के अंतर्गत ऐसे अनेक भवन निर्माण किये जा रहे हैं जिसे लेकर भी जिम्मेदार अधिकारी बिना नक्शा पास कराये बनने वाले ऐसे भवन के मालिकों पर कोई कार्यवाही नहीं कर रहे हैं। यदाकदा इनकी कार्यवाही नलजल वसूली, किराया वसूली, तोडफ़ोड़ इत्यादि में ही दिखाई देती है। लेकिन निम्र तबके के लोगों पर ऐसी कार्यवाही हो रही है जबकि बड़े तबके के लोगों को नोटिस जारी कर नियमितिकरण के लिये बुलाया गया था परंतु उन्होंने उक्त नोटिस पर कोई जवाब नहीं दिया, इस पर भी निगम अमला किस वजह से खामोश हो गया और ऐसे लोगों पर सख्ती से क्यों कार्यवाही नहीं की गई, समझ से परे हैं।
शहरवासियों ने अपनी मूलभूत समस्याओं को त्वरित गति से निराकरण होने की आशा व्यक्त करते हुए शहर में भी शताब्दी के बाद निगम में कांग्रेस समर्थित सत्ता बनाई थी। लेकिन जैसे ही यह शहरी सरकार कामकाज शुरू की, सर्वप्रथम उस समय विवाद में आई जब डेढ़ प्रतिशत बिलोव दर पर 50 टेंडरों में से 35 टेंडरों को स्वीकार कर लिया गया जिस पर बाद में घमासान मचा और यह निविदा का मामला मेयर इन काउंसिल की बैठक में भी रद्द कर दिया गया। इसके बाद नाटकीय घटनाक्रम से इसी टेंडर को इतने ही दर पर भरे जाने को लेकर काफी हो-हल्ला मचा था। खबर थी कि इस मामले में एक पार्षद के मकान में निर्वाचित जनप्रतिनिध के भाई ने बैठक लेकर ठेकेदारों का रंग बनाया और इन्हीं के द्वारा 35 निविदा में डेढ़ प्रतिशत बिलोव दर पर टेंडर डाला गया था। इसके बाद ब्लीचिंग पावडर, फिर रिक्शा खरीदी, इसके बाद अभी हाल में ही फिनाइल खरीदी के मामले से शहरवासियों की जो आशाएं थी वह धूमिल होते नजर आई है और अधिकांश लोगों की जुबान में नगर निगम का यह भ्रष्टाचार चर्चित है। इसी तरह शहर के अंदर निर्माण कार्यों में ठैकेदारों द्वारा जिस प्रकार लापरवाही पूर्वक काम किया जा रहा है, उस पर भी लोगों ने उसके भौतिक सत्यापन की मांग की है। जागरूक लोगों ने छोटी-मोटी समस्याओं को त्वरित गति से हल कराये जाने की मांग को लेकर निगम के जिम्मेदार पदाधिकारियों से कराने की मांग की है और साथ ही कार्यालय अवधि में भी जो अधिकारी, कर्मचारी गायब रहते हैं, उन पर भी कार्यवाही की मांग की है।

